लेक्चर में मस्ती थी;
हमारी भी कुछ हस्ती थी;
टीचर का सहारा था दिल ये आवारा था;
कहाँ आ गए इस डिग्री की आफ़त में यार;
वो स्कूल ही कितना प्यारा था।

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रात को किताबें मेरी मुझे देखती रही;
नींद मुझे अपनी और खींचती रही;
नींद का झोका मेरा मन मोह गया;
और एक रात फिर ये जीनियस बिना पढ़े ही सो गया।

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बचपन से मैं सुन रहा हूँ कि "बच्चे भगवान का रूप होते हैं।"
अगर हाँ तो उनके लिए इतने कम मंदिर हैं जबकि स्कूल ज्यादा क्यों?

सोचिये की भौतिकी (Physics) आसान कैसे हो सकती थी;
अगर;
अगर ;
अगर;
सेब की जगह पेड़ गिरा होता और न्यूटन वहीँ निपट गया होता।

अगर एक अकेला टीचर सारे विषय (subject) नहीं पढ़ा सकता तो;
ऐसी उम्मीद क्यों करते हैं कि एक विद्यार्थी सारे विषय (subject) पढ़े।
"जागो बच्चों जागो"

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बहुत दर्द होता है जब अध्यापिका बोलती है कि तुम्हारा और तुम्हारे आगे वाले का जवाब एक है।
तब दिल से आवाज आती है, "तो साला सवाल भी तो एक ही था"।

निगाहें आज भी उस शख्स को शिद्दत से तलाश करती हैं;
जिसने कहा था, "बस दसवी कर लो, आगे पढ़ाई आसान है"।

आप सभी को यह सूचित किया जाता है कि घर में रखे सारे जूते, चप्पल, बेल्ट, झाड़ू और बेलन को छुपा दें।
क्योंकि
.
. .
. . .
रिजल्ट आने वाला है।

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निकले जो दुनिया की भीड़ में, तो ग़ालिब यह जाना है;
हर वो शख्स उदास है जिसके बच्चे को सोमवार से स्कूल जाना है।

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एग्जाम के पावन मौके पर अर्ज़ है:
पढ़ना लिखना त्याग दे मित्रा;
नकल से रख आस;
ओढ़ रजाई सो जा बेटा;
रब करेगा पास।
पर्ची वाले बाबा की जय!

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