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अब की बार 50 के पार
बहन जी दूध गर्म करने की ज़रुरत नहीं, रास्ते में ही उबल गया है।

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काश सूरज की भी बीवी होती...
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कम से कम उसे थोड़ा कंट्रोल में तो रखती।

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आज कल सुबह नहीं होती बल्कि सीधे दोपहर हो जाती है। सुबह का भूला शाम को घर आये तो उसे भूला हुआ नहीं...
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बल्कि भुना हुआ कहते हैं।

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पता नहीं कौन सा मौसम चल रहा है। रात को कम्बल लेकर पंखा चलाकर सोता हूँ और सुबह गर्म पानी से नहाना पड़ता है।
कौनो फिरकी ले रहा है भाई।

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गर्मी आ रही है। लड़कियाँ जहाँ खुश हैं कि अब बिना स्वेटर के अपने फैशन वाले कपडे पहन कर घूम सकती हैं।
वहीं लड़के दुखी हैं कि बिना जैकेट के ठेके से बोतल कैसे लाएंगे।

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ठण्ड का एक फायदा तो है,
गर्मी बिल्कुल नहीं लगती।

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वक़्त वक़्त की मोहब्बत है, वक़्त वक़्त की रूसवाइयां;
कभी A.C. सगे हो जाते हैं तो कभी रजाईयां।

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गर्मियों में ठंडी हवा के लिये माँगी हुई दुआ अब सर्दियों में कबूल होते हुए देखकर यकीन हो गया है कि...
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ऊपर वाले के घर देर है अंधेर नही।

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ठण्ड भी जनवरी के पहले 15 दिन Odd-Even के चक्कर में फंसी रही...
अब अपनी पूरी ताकत से बाहर निकली है।

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दगा तो इस ठंड ने किया है...
दो दिन पहले ही नया स्वेटर खरीदा था और आज टी-शर्ट पहन कर घूम रहा हूँ।

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