सुनो, जिस हिसाब से गर्मी पड़ रही है उससे तो लगता है इस बार...
जेब में प्याज़ रखने से कुछ नहीं होगा, सिर पर प्याज़ की बोरी रखनी पड़ेगी!
अब ना जीओ चलेगा न फोग,
अब चलेगी लू वो भी गरमा गर्म!
साला समझ नहीं आ रहा है ये मौसम कौन सा चल रहा है!
मच्छर काट रहे हैं
कम्भ्ल भी औढ रहे हैं
पंखा भी चला रहे हैं
नहा भी गरम पानी से रहे हैं
और पी ठंडा पानी रहे हैं
लगता है कोनो फिरकी ले रहा है!
प्रिय दिसंबर,
तुम कृपा वापिस आ जाओ, तुम तो सिर्फ नहाने नहीं देते थे।
जनवरी तो हाथ भी धोने नहीं दे रहा।
आज सुबह-सुबह बहुत खतरनाक सपना देखा...
.
.
.
.
.
.
.
"मैं कूलर के सामने सो रहा हूँ!"
हमारे प्रदेश में किसी भी पार्टी की लहर नहीं है!
यहाँ सिर्फ शीतलहर चल रही है!
रात को ज़ोरदार ठण्ड लगी तो मैंने योगी जी का फार्मूला आज़माया!
दिसम्बर का नाम बदलकर अप्रैल रख दिया!
ठण्ड फुर्र!
सबसे महत्त्वपूर्ण होता है वक़्त
देख लीजिए कल पंखे सगे थे और आज रजाईयां अपनी सी लगने लगी हैं!
ठण्ड मैं एक और समस्या होती है
छाँव मैं बैठ जाओ तो ठण्ड लगने लगती है
और धुप मैं बैठ जाओ तो मोबाइल का डिस्प्ले नहीं दीखता।
जैसे जैसे सर्दी आ रही है वैसे वैसे सुबह के टाइम बिस्तर का गुरुत्वाकर्षण भी बढ़ता जा रहा है!