एक बोसे के भी नसीब न हों; होंठ इतने भी अब ग़रीब न हों! *बोसे: चुम्बन |
किसी हालत में भी तन्हा नहीं होने देती; है यही एक ख़राबी मेरी तन्हाई की! |
किसी कली किसी गुल में किसी चमन में नहीं; वो रंग है ही नहीं जो तेरे बदन में नहीं! |
चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है; अक्स किस का है कि इतनी रौशनी पानी में है! |
मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं; फिर उस के बाद गहरी नींद सोना चाहता हूँ मैं! |
एक रात वो गया था जहाँ बात रोक के; अब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के! |
वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा; तो इंतज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं! |