मैं उस के बदन की मुक़द्दस किताब; निहायत अक़ीदत से पढ़ता रहा! *मुक़द्दस: पवित्र *अक़ीदत: श्रद्धा |
अब तो चुप-चाप शाम आती है; पहले चिड़ियों के शोर होते थे! |
आज फिर मुझ से कहा दरिया ने; क्या इरादा है बहा ले जाऊँ! |
हैरान मत हो तैरती मछली को देख कर; पानी में रौशनी को उतरते हुए भी देख! |
धूप ने गुज़ारिश की; एक बूँद बारिश की! |
अंधेरा है कैसे तेरा ख़त पढ़ूँ; लिफ़ाफ़े में कुछ रौशनी भेज दे! |
सर्दी में दिन सर्द मिला; हर मौसम बेदर्द मिला! |