किसी को क्या ख़बर ऐ सुब्ह वक़्त-ए-शाम क्या होगा; ख़ुदा जाने तेरे आग़ाज़ का अंजाम क्या होगा! |
सुन चुके जब हाल मेरा ले के अंगड़ाई कहा; किस ग़ज़ब का दर्द ज़ालिम तेरे अफ़्साने में था! |
ढूँढोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम; जो याद न आए भूल के फिर ऐ हम-नफ़सो वो ख़्वाब हैं हम! |