'नजर' 'नमाज' 'नजरिया' सब कुछ बदल गया, एक रोज इश्क़ हुआ और मेरा खुदा बदल गया। |
मैं घर से तेरी तमन्ना पहन के जब निकलूँ, बरहना शहर में कोई नज़र ना आए मुझे। |
मैं फ़रमाईश हूँ उसकी, वो इबादत है मेरी, इतनी आसानी से कैसे निकाल दूँ उसे अपने दिल से, मैं ख्वाब हूँ उसका, वो हकीकत है मेरी। |
फिर इश्क़ का जूनून चढ़ रहा है सिर पे, मयख़ाने से कह दो दरवाज़ा खुला रखे। |
क्या जरूरत है मुझे इतर की बदन पर लगाने के लिए, तेरा ख्याल ही बहुत है मुझे महकाने के लिए। |
देखो आपकी आँखों से गुफ्तगू करके साहब, मेरी आँखों ने भी बोलना सीख लिया। |
देख मेरी आँखों में ख्वाब किसके हैं, दिल में मेरे सुलगते तूफ़ान किसके हैं, नहीं गुज़रा कोई आज तक इस रास्ते से हो कर, फिर ये क़दमों के निशान किसके हैं। |
दूर रह कर भी जो समाया है मेरी रूह में; पास वालों पर वो शख्स कितना असर रखता होगा। |
यह मेरा इश्क़ था या फिर दीवानगी की इन्तहा, कि तेरे ही करीब से गुज़र गए तेरे ही ख्याल से। |
कर दे इश्क़ में अपने मदहोश तरह कि, होश भी आने से पहले इज़ाज़त माँगे। |