लड़ के जाता तो हम मना लेते; उसने तो मुस्कुरा के छोड़ा है! |
सफर-ए-मोहब्बत अब खत़म हीं समझिए साहिब, उनके रवैये से अब जुदाई की महक आने लगी है! |
अगर एहसास बयां हो जाते लफ्जों से; तो फिर कौन तारीफ करता खामोशियों की! |
ठहाके छोड़ आये हैं अपने कच्चे घरों में हम; रिवाज़ इन पक्के मकानों में बस मुस्कुराने का है! |
कुछ यूं हो रहा है आजकल रिश्तों में विस्तार; जितना जिस से मतलब उतना उस से प्यार! |
मसला तो सिर्फ एहसासों का है, जनाब; रिश्ते तो बिना मिले भी सदियां गुजार देते हैं! |
दुनिया देखते देखते कितनी बेगैरत हो गयी; हम जरा सा क्या बदले, सबको हैरत हो गयी! |
सफर-ए-जिन्दगी मेँ जब कोई, मुश्किल मकाम आया; ना गैरोँ ने तवज्जो दी, ना अपना कोई काम आया! |
मुझसे नहीं कटती अब ये उदास रातें; कल सूरज से कहूँगा मुझे साथ लेकर डूबे! |
कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी; सदियों रहा है दुश्मन दौरे -जमाँ हमारा! |