Amanat Lakhnavi Hindi Shayari

  • उलझा दिल-ए-सितम-ज़दा ज़ुल्फ़-ए-बुताँ से आज;
    नाज़िल हुई बला मेरे सर पर कहाँ से आज;

    तड़पूँगा हिज्र-ए-यार में है रात चौधवीं;
    तन चाँदनी में होगा मुक़ाबिल कताँ से आज;

    दो-चार रश्क-ए-माह भी हम-राह चाहिएँ;
    वादा है चाँदनी में किसी मेहर-बाँ से आज;

    हंगाम-ए-वस्ल रद्द-ओ-बदल मुझ से है अबस;
    निकलेगा कुछ न काम नहीं और हाँ से आज;

    क़ार-ए-बदन में रूह पुकारी ये वक़्त-ए-नज़ा;
    मुद्दत के बाद उठते हैं हम इस मकाँ से आज;

    अँधेर था निगाह-ए-'अमानत' में शाम सहर;
    तुम चाँद की तरह निकल आए कहाँ से आज।
    ~ Amanat Lakhnavi
  • भूला हूँ मैं आलम को सर-शार इसे कहते हैं;
    मस्ती में नहीं ग़ाफ़िल हुश्यार इसे कहते हैं;

    गेसू इसे कहते हैं रुख़सार इसे कहते हैं;
    सुम्बुल इसे कहते हैं गुल-ज़ार इसे कहते हैं;

    इक रिश्ता-ए-उल्फ़त में गर्दन है हज़ारों की;
    तस्बीह इसे कहते हैं ज़ुन्नार इसे कहते हैं;

    महशर का किया वादा याँ शक्ल न दिखलाई;
    इक़रार इसे कहते हैं इंकार इसे कहते हैं;

    टकराता हूँ सर अपना क्या क्या दर-ए-जानाँ से;
    जुम्बिश भी नहीं करती दीवार इसे कहते हैं;

    ख़ामोश 'अमानत' है कुछ उफ़ भी नहीं करता;
    क्या क्या नहीं ऐ प्यारे अग़्यार इसे कहते हैं।
    ~ Amanat Lakhnavi