Ameer Imam Hindi Shayari

  • हर एक शाम का मंज़र धुआँ उगलने लगा,
    वो देखो दूर कहीं आसमाँ पिघलने लगा;

    तो क्या हुआ जो मयस्सर कोई लिबास नहीं,
    पहन के धूप मैं अपने बदन पे चलने लगा;

    मैं पिछली रात तो बेचैन हो गया इतना,
    कि उस के बाद ये दिल ख़ुद-ब-ख़ुद बहलने लगा;

    अजीब ख़्वाब थे शीशे की किर्चियों की तरह,
    जब उन को देखा तो आँखों से ख़ूँ निकलने लगा;

    बना के दाएरा यादें सिमट के बैठ गईं.
    ब-वक़्त-ए-शाम जो दिल का अलाव जलने लगा।
    ~ Ameer Imam