Ana Qasmi Hindi Shayari

  • अक्सर मिलना ऐसा हुआ बस;
    लब खोले और उसने कहा बस;

    तब से हालत ठीक नहीं है;
    मीठा मीठा दर्द उठा बस;

    सारी बातें खोल के रखो;
    मैं हूं तुम हो और खुदा बस;

    तुमने दुख में आंख भिगोई;
    मैने कोई शेर कहा बस;

    वाकिफ़ था मैं दर्द से उसके;
    मिल कर मुझसे फूट पड़ा बस;

    जाने भी तो बात हटाओ;
    तुम जीते मैं हार गया बस;

    इस सहरा में इतना कर दे;
    मीठा चश्मा,पेड़,हवा बस।
    ~ Ana Qasmi
  • अक्सर मिलना ऐसा हुआ बस;
    लब खोले और उसने कहा बस;

    तब से हालत ठीक नहीं है;
    मीठा मीठा दर्द उठा बस;

    सारी बातें खोल के रखो;
    मैं हूं तुम हो और खुदा बस;

    तुमने दुख में आंख भिगोई;
    मैने कोई शेर कहा बस;

    वाकिफ़ था मैं दर्द से उसके;
    मिल कर मुझसे फूट पड़ा बस;

    इस सहरा में इतना कर दे;
    मीठा चश्मा, पेड़, हवा बस।
    ~ Ana Qasmi
  • माने जो कोई बात, तो एक बात बहुत है;
    सदियों के लिए पल की मुलाक़ात बहुत है;

    दिन भीड़ के पर्दे में छुपा लेगा हर एक बात;
    ऐसे में न जाओ, कि अभी रात बहुत है;

    महीने में किसी रोज़, कहीं चाय के दो कप;
    इतना है अगर साथ, तो फिर साथ बहुत है;

    रसमन ही सही, तुमने चलो ख़ैरियत पूछी;
    इस दौर में अब इतनी मदारात बहुत है;

    दुनिया के मुक़द्दर की लक़ीरों को पढ़ें हम;
    कहते है कि मज़दूर का बस हाथ बहुत है;

    फिर तुमको पुकारूँगा कभी कोहे 'अना' से;
    ऐ दोस्त अभी गर्मी-ए-हालात बहुत है।
    ~ Ana Qasmi