अक्सर मिलना ऐसा हुआ बस; लब खोले और उसने कहा बस; तब से हालत ठीक नहीं है; मीठा मीठा दर्द उठा बस; सारी बातें खोल के रखो; मैं हूं तुम हो और खुदा बस; तुमने दुख में आंख भिगोई; मैने कोई शेर कहा बस; वाकिफ़ था मैं दर्द से उसके; मिल कर मुझसे फूट पड़ा बस; जाने भी तो बात हटाओ; तुम जीते मैं हार गया बस; इस सहरा में इतना कर दे; मीठा चश्मा,पेड़,हवा बस। |
अक्सर मिलना ऐसा हुआ बस; लब खोले और उसने कहा बस; तब से हालत ठीक नहीं है; मीठा मीठा दर्द उठा बस; सारी बातें खोल के रखो; मैं हूं तुम हो और खुदा बस; तुमने दुख में आंख भिगोई; मैने कोई शेर कहा बस; वाकिफ़ था मैं दर्द से उसके; मिल कर मुझसे फूट पड़ा बस; इस सहरा में इतना कर दे; मीठा चश्मा, पेड़, हवा बस। |
माने जो कोई बात, तो एक बात बहुत है; सदियों के लिए पल की मुलाक़ात बहुत है; दिन भीड़ के पर्दे में छुपा लेगा हर एक बात; ऐसे में न जाओ, कि अभी रात बहुत है; महीने में किसी रोज़, कहीं चाय के दो कप; इतना है अगर साथ, तो फिर साथ बहुत है; रसमन ही सही, तुमने चलो ख़ैरियत पूछी; इस दौर में अब इतनी मदारात बहुत है; दुनिया के मुक़द्दर की लक़ीरों को पढ़ें हम; कहते है कि मज़दूर का बस हाथ बहुत है; फिर तुमको पुकारूँगा कभी कोहे 'अना' से; ऐ दोस्त अभी गर्मी-ए-हालात बहुत है। |