चोट लगी तो अपने अन्दर चुपके चुपके रो लेते हो, अच्छी बात है आसानी से ज़ख्मों को तुम धो लेते हो; दिन भर कोशश करते हो सब को ग़म का दरमाँ मिल जाये, नींद की गोली खाकर शब भर बेफ़िक्री में सो लेते हो; अपनों से मोहतात रहो, सब नाहक़ मुश्रिक समझेंगे, ज्यों ही अच्छी मूरत देखी पीछे पीछे हो लेते हो; ख़ुश-एख्लाक़ी ठीक है लेकिन सेहत पे ध्यान ज़रूरी है, बैठे बैठे सब के दुख में अपनी जान भिगो लेते हो; 'अंसारी जी' आस न रक्खो कोई तुम्हें पढ़ पायेगा, क्या यह कम है पलकों में तुम हर्फ़-ए-अश्क पिरो लेते हो। |