Atiqullah Hindi Shayari

  • कुछ और दिन अभी इस जा क़याम करना था;
    यहाँ चराग़ वहाँ पर सितारा धरना था;

    वो रात नींद की दहलीज़ पर तमाम हुई;
    अभी तो ख़्वाब पे इक और ख़्वाब धरना था;

    अगर रसा में न था वो भरा भरा सा बदन;
    रंग-ए-ख़याल से उस को तुलू करना था;

    निगाह और चराग़ और ये असासा-ए-जाँ;
    तमाम होती हुई शब के नाम करना था;

    गुरेज़ होता चला जा रहा था मुझ से वो;
    और एक पल के सिरे पर मुझे ठहरना था।
    ~ Atiqullah
  • तू भी तो एक लफ़्ज़ है इक दिन मिरे बयाँ में आ;
    मेरे यक़ीं में गश्त कर मेरी हद-ए-गुमाँ में आ;

    नींदों में दौड़ता हुआ तेरी तरफ़ निकल गया;
    तू भी तो एक दिन कभी मेरे हिसार-ए-जाँ में आ;

    इक शब हमारे साथ भी ख़ंजर की नोक पर कभी;
    लर्ज़ीदा चश्म-ए-नम में चल जलते हुए मकाँ में आ;

    नर्ग़े में दोस्तों के तू कब तक रहेगा सुर्ख़-रू;
    नेज़ा-ब-नेज़ा दू-ब-दू-सफ़्हा-ए-दुश्मनान में आ;

    इक रोज़ फ़िक्र-ए-आब-ओ-नाँ तुझ को भी हो जान-ए-जहाँ;
    क़ौस-ए-अबद को तोड़ कर इस अर्सा-ए-ज़ियाँ में आ।
    ~ Atiqullah