Aziz Warsi Hindi Shayari

  • आख़िर-ए-शब वो तेरी अँगड़ाई,
    कहकशाँ भी फलक पे शरमाई;

    आप ने जब तवज्जोह फ़रमाई,
    गुलशन-ए-ज़ीस्त में बहार आई;

    दास्ताँ जब भी अपनी दोहराई,
    ग़म ने की है बड़ी पज़ीराई;

    सजदा-रेज़ी को कैसे तर्क करूँ,
    है यही वजह-ए-इज़्ज़त-अफ़ज़ाई;

    तुम ने अपना नियाज़-मंद कहा,
    आज मेरी मुराद बर आई;

    आप फ़रमाइए कहाँ जाऊँ,
    आप के दर से है शनासाई;

    उस की तक़दीर में है वस्ल की शब,
    जिस ने बर्दाश्त की है तन्हाई;

    रात पहलू में आप थे बे-शक,
    रात मुझ को भी ख़ूब नींद आई;

    मैं हूँ यूँ इस्म-ब-मुसम्मा 'अज़ीज़',
    वारिश-ए-पाक का हूँ शैदाई।
    ~ Aziz Warsi