Begum Lakhnavi Hindi Shayari

  • बरसों ग़म-ए-गेसू में गिरफ़्तार तो रखा,
    अब कहते हो कि तुम ने मुझे मार तो रखा;

    कुछ बे-अदबी और शब-ए-वस्ल नहीं की,
    हाँ यार के रूख़्सार पे रूख़्सार तो रखा;

    इतना भी ग़नीमत है तेरी तरफ़ से ज़ालिम,
    खिड़की न रखी रौज़न-ए-दीवार तो रखा;

    वो ज़ब्ह करे या न करे ग़म नहीं इस का,
    सर हम ने तह-ए-ख़ंजर-ए-ख़ूँ-ख़्वार तो रखा;

    इस इश्क़ की हिम्मत के मैं सदक़े हूँ कि 'बेगम',
    हर वक़्त मुझे मरने पे तैयार तो रखा।
    ~ Begum Lakhnavi