Farigh Bukhari Hindi Shayari

  • कितने शिकवे गिल हैं पहले ही,
    राह में फ़ासले हैं पहले ही;

    कुछ तलाफ़ी निगार-ए-फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ,
    हम लुटे क़ाफ़िले हैं पहले ही;

    और ले जाए गा कहाँ गुचीं,
    सारे मक़्तल खुले हैं पहले ही;

    अब ज़बाँ काटने की रस्म न डाल,
    कि यहाँ लब सिले हैं पहले ही;

    और किस शै की है तलब 'फ़ारिग़',
    दर्द के सिलसिले हैं पहले ही।
    ~ Farigh Bukhari