Iqbal Azeem Hindi Shayari

  • अपना घर छोड़ के हम लोग वहाँ तक पहुँचे,
    सुब्ह-ए-फ़र्दा की किरन भी न जहाँ तक पहुँचे;

    मैं ने आँखों में छुपा रक्खे हैं कुछ और चराग़,
    रौशनी सुब्ह की शायद न यहाँ तक पहुँचे;

    बे-कहे बात समझ लो तो मुनासिब होगा,
    इस से पहले के यही बात ज़बाँ तक पहुँचे;

    तुम ने हम जैसे मुसाफ़िर भी न देखे होंगे,
    जो बहारों से चले और ख़िज़ाँ तक पहुँचे;

    आज पिंदार-ए-तमन्ना का फ़ुसूँ टूट गया;
    चंद कम-ज़र्फ़ गिले नोक-ए-ज़बाँ तक पहुँचे।
    ~ Iqbal Azeem