तेग़-बाज़ी का शौक़ अपनी जगह; आप तो क़त्ल-ए-आम कर रहे हैं! Meaning: तेग़-बाज़ी = तलवार बाज़ी, तलवार चलाना |
हम हैं मसरूफ़-ए-इंतिज़ाम मगर; जाने क्या इंतिज़ाम कर रहे हैं। |
कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगे, जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे; उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा, यूँ ही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे; बंद रहे जिन का दरवाज़ा ऐसे घरों की मत पूछो, दीवारें गिर जाती होंगी आँगन रह जाते होंगे; मेरी साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएंगे, यानी मेरे बाद भी यानी साँस लिये जाते होंगे; यारो कुछ तो बात बताओ उस की क़यामत बाहों की, वो जो सिमटते होंगे इन में वो तो मर जाते होंगे। |
महक उठा है आँगन... महक उठा है आँगन इस ख़बर से; वो ख़ुशबू लौट आई है सफ़र से; जुदाई ने उसे देखा सर-ए-बाम; दरीचे पर शफ़क़ के रंग बरसे; मैं इस दीवार पर चढ़ तो गया था; उतारे कौन अब दीवार पर से; गिला है एक गली से शहर-ए-दिल की; मैं लड़ता फिर रहा हूँ शहर भर से; उसे देखे ज़माने भर का ये चाँद; हमारी चाँदनी छाए तो तरसे; मेरे मानन गुज़रा कर मेरी जान; कभी तू खुद भी अपनी रहगुज़र से। |
तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो; जो मिले ख़्वाब में वो दौलत हो; तुम हो ख़ुशबू के ख़्वाब की ख़ुशबू; औए इतने ही बेमुरव्वत हो; तुम हो पहलू में पर क़रार नहीं; यानी ऐसा है जैसे फुरक़त हो; है मेरी आरज़ू के मेरे सिवा; तुम्हें सब शायरों से वहशत हो; किस तरह छोड़ दूँ तुम्हें जानाँ; तुम मेरी ज़िन्दगी की आदत हो; किस लिए देखते हो आईना; तुम तो ख़ुद से भी ख़ूबसूरत हो; दास्ताँ ख़त्म होने वाली है; तुम मेरी आख़िरी मोहब्बत हो। |
रूह प्यासी... रूह प्यासी कहाँ से आती है; ये उदासी कहाँ से आती है; दिल है शब दो का तो ऐ उम्मीद ; तू निदासी कहाँ से आती है; शौक में ऐशे वत्ल के हन्गाम; नाशिफासी कहाँ से आती है; एक ज़िन्दान-ए-बेदिली और शाम; ये सबासी कहाँ से आती है; तू है पहलू में फिर तेरी खुशबू; होके बासी कहाँ से आती है। |
कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगे; जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे; उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा; यूँ ही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे; बंद रहे जिन का दरवाज़ा ऐसे घरों की मत पूछो; दीवारें गिर जाती होंगी आँगन रह जाते होंगे; मेरी साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएंगे; यानी मेरे बाद भी यानी साँस लिये जाते होंगे; यारो कुछ तो बात बताओ उस की क़यामत बाहों की; वो जो सिमटते होंगे इन में वो तो मर जाते होंगे। |
महक उठा है आँगन... महक उठा है आँगन इस ख़बर से; वो ख़ुशबू लौट आई है सफ़र से; जुदाई ने उसे देखा सर-ए-बाम; दरीचे पर शफ़क़ के रंग बरसे; मैं इस दीवार पर चढ़ तो गया था; उतारे कौन अब दीवार पर से; गिला है एक गली से शहर-ए-दिल की; मैं लड़ता फिर रहा हूँ शहर भर से; उसे देखे ज़माने भर का ये चाँद; हमारी चाँदनी छाए तो तरसे; मेरे मानन गुज़रा कर मेरी जान; कभी तू खुद भी अपनी रहगुज़र से। |
तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ यह कैसी तन्हाई है; तेरे साथ तेरी याद आई, क्या तू सचमुच आई है; शायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझल होने का; मुझ को देखते ही जब उन की अँगड़ाई शरमाई है; उस दिन पहली बार हुआ था मुझ को रफ़ाक़ात का एहसास; जब उस के मलबूस की ख़ुश्बू घर पहुँचाने आई है; हुस्न से अर्ज़ ए शौक़ न करना हुस्न को ज़ाक पहुँचाना है; हम ने अर्ज़ ए शौक़ न कर के हुस्न को ज़ाक पहुँचाई है; एक तो इतना हब्स है फिर मैं साँसें रोके बैठा हूँ; वीरानी ने झाड़ू दे के घर में धूल उड़ाई है। |
इक हुनर है जो कर गया हूँ मैं; सब के दिल से उतर गया हूँ मैं; कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँ; सुन रहा हूँ कि घिर गया हूँ मैं। |