Khalid Mahmood Hindi Shayari

  • आँखों में धूप दिल में हरारत लहू की थी,
    आतिश जवान था तो क़यामत लहू की थी;

    ज़ख़्मी हुआ बदन तो वतन याद आ गया,
    अपनी गिरह में एक रिवायत लहू की थी;

    ख़ंजर चला के मुझ पे बहुत ग़म-ज़दा हुआ,
    भाई के हर सुलूक में शिद्दत लहू की थी;

    कोह-ए-गिराँ के सामने शीशे की क्या बिसात,
    अहद-ए-जुनूँ में सारी शरारत लहू की थी;

    रूख़्सार ओ चश्म ओ लब गुल ओ सहबा शफ़क़ हिना,
    दुनिया-ए-रंग-ओ-बू में तिजारत लहू की थी;

    'ख़ालिद' हर एक ग़म में बराबर का शरीक था,
    सारे जहाँ के बीच रफ़ाकत लहू की थी।
    ~ Khalid Mahmood
  • आँखों में धूप दिल में हरारत...

    आँखों में धूप दिल में हरारत लहू की थी;
    आतिश जवान था तो क़यामत लहू की थी;

    ज़ख़्मी हुआ बदन तो वतन याद आ गया;
    अपनी गिरह में एक रिवायत लहू की थी;

    ख़ंजर चला के मुझ पे बहुत ग़म-ज़दा हुआ;
    भाई के हर सुलूक में शिद्दत लहू की थी;

    कोह-ए-गिराँ के सामने शीशे की क्या बिसात;
    अहद-ए-जुनूँ में सारी शरारत लहू की थी;

    'ख़ालिद' हर एक ग़म में बराबर का शरीक था;
    सारे जहाँ के बीच रफ़ाकत लहू की थी।
    ~ Khalid Mahmood