अपनी जिंदगी के अंधेरों का शुक्रगुजार हूँ मैं; जब से मुझे पता चला है कि; तेरी रौशनी ने तुझे अंधा बना दिया... |
माँगते थे रोज़ दुआ में सुकून ख़ुदा से; सोचते थे वो चैन हम लाएं कहाँ से; किसी रोज एक प्यासे को पानी क्या पिला दिया; लगा जैसे खुदा ने सुकून का पता बता दिया। |
बर्बादी का दोष दुश्मनों को देता रहा मैं अब तलक; दोस्तों को भी परख लिया होता तो अच्छा होता; यूँ तो हर मोड़ पर मिले कुछ दगाबाज लेकिन; आस्तीन को भी झठक लिया होता तो अच्छा होता। |
रब ने नवाजा हमें जिंदगी देकर; और हम शौहरत मांगते रह गये; जिंदगी गुजार दी शौहरत के पीछे; फिर जीने की मौहलत मांगते रह गये। |
कहीं बेहतर है तेरी अमीरी से मुफलिसी मेरी; चंद सिक्कों के लिए तुने क्या नहीं खोया है; माना नहीं है मखमल का बिछोना मेरे पास; पर तु ये बता, कितनी राते चैन से सोया है। |