दिल ने एक एक दुख सहा तनहा, अंजुमन अंजुमन रहा तन्हा; ढलते सायों में तेरे कूचे से, कोई गुज़रा है बारहा तन्हा; तेरी आहट क़दम क़दम और मैं, इस मइयत में भी रहा तन्हा; कहना यादों के बर्फ़-ज़ारों से, एक आँसू बहा बहा तनहा; डूबते साहिलों के मोड़ पे दिल, इक खंडर सा रहा सहा तन्हा; गूँजता रह गया ख़लाओं में; वक़्त का एक क़हक़हा तन्हा। |
और अब ये कहता हूँ ये जुर्म तो रवा रखता; मैं उम्र अपने लिए भी तो कुछ बचा रखता। |
बढ़ी जो हद से तो सारे तिलिस्म तोड़ गयी; वो खुश दिली जो दिलों को दिलों से जोड़ गयी; अब्द की राह पे बे-ख्वाब धड़कनों की धमक; जो सो गए उन्हें बुझते जगो में छोड़ गयी। |
कभी तो सोच तेरे सामने नहीं गुज़रे; वो सब समय जो तेरे ध्यान से नहीं गुज़रे; ये और बात है कि उनके दरमियाँ मैं भी; ये वाकिये किसी तकरीब से नहीं गुज़रे। |