Nazeer Banarsi Hindi Shayari

  • एक दीवाने को जो आए हैं समझाने कई; <br/>
पहले मैं दीवाना था और अब हैं दीवाने कई! Upload to Facebook
    एक दीवाने को जो आए हैं समझाने कई;
    पहले मैं दीवाना था और अब हैं दीवाने कई!
    ~ Nazeer Banarsi
  • ये किसने गला घोंट दिया जिन्दादिली का,
    चेहरे पे हँसी है कि जनाजा है हँसी का;

    हर हुस्न में उस हुस्न की हल्की सी झलक है,
    दीदार का हक मुझको है जल्वा हो किसी का;

    रक्साँ है कोई हूर कि लहराती है सहबा,
    उड़ना कोई देखे मिरे शीशे की परी का;

    जब रात गले मिलके बिछड़ती है सहर से,
    याद आता है मंजर तेरी रूखसत की घड़ी का;

    उन आँखों के पैमानों से छलकी जो जरा सी,
    मैखाने में होश उड़ गया शीशे की परी का;

    रूस्वा है 'नजीर' अपने ही बुतखाने की हद में,
    दीवाना अगर है तो बनारस की गली का।
    ~ Nazeer Banarsi
  • बुझा है दिल भरी महफ़िल में रौशनी देकर,
    मरूँगा भी तो हज़ारों को ज़िन्दगी देकर;

    क़दम-क़दम पे रहे अपनी आबरू का ख़याल,
    गई तो हाथ न आएगी जान भी देकर;

    बुज़ुर्गवार ने इसके लिए तो कुछ न कहा,
    गए हैं मुझको दुआ-ए-सलामती देकर;

    हमारी तल्ख़-नवाई को मौत आ न सकी,
    किसी ने देख लिया हमको ज़हर भी देकर;

    न रस्मे दोस्ती उठ जाए सारी दुनिया से,
    उठा न बज़्म से इल्ज़ामे दुश्मनी देकर;

    तिरे सिवा कोई क़ीमत चुका नहीं सकता,
    लिया है ग़म तिरा दो नयन की ख़ुशी देकर।
    ~ Nazeer Banarsi