अब किस से कहें और कौन सुने जो हाल तुम्हारे बाद हुआ; इस दिल की झील सी आँखों में इक ख़्वाब बहुत बर्बाद हुआ; ये हिज्र-हवा भी दुश्मन है इस नाम के सारे रंगों की; वो नाम जो मेरे होंटों पे ख़ुशबू की तरह आबाद हुआ; उस शहर में कितने चेहरे थे कुछ याद नहीं सब भूल गए; इक शख़्स किताबों जैसा था वो शख़्स ज़बानी याद हुआ; वो अपने गाँव की गलियाँ थी दिल जिन में नाचता गाता था; अब इस से फ़र्क नहीं पड़ता नाशाद हुआ या शाद हुआ; बेनाम सताइश रहती थी इन गहरी साँवली आँखों में; ऐसा तो कभी सोचा भी न था अब जितना बेदाद हुआ। |
मुँह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन; आवाजों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन; सदियों सदियों वही तमाशा रस्ता रस्ता लम्बी खोज; लेकिन जब हम मिल जाते हैं खो जाता है जाने कौन। |
तुझ से अब और मोहब्बत... तुझ से अब और मोहब्बत नहीं की जा सकती; ख़ुद को इतनी भी अज़िय्यत नहीं दी जा सकती; जानते हैं कि यक़ीं टूट रहा है दिल पर; फिर भी अब तर्क ये वहशत नहीं की जा सकती; हवस का शहर है और उस में किसी भी सूरत; साँस लेने की सहूलत नहीं दी जा सकती; रौशनी के लिए दरवाज़ा खुला रखना है; शब से अब कोई इजाज़त नहीं ली जा सकती; इश्क़ ने हिज्र का आज़ार तो दे रखा है; इस से बढ़ कर तो रिआयत नहीं दी जा सकती। |
तुझ से अब और मोहब्बत नहीं की जा सकती; ख़ुद को इतनी भी अज़िय्यत नहीं दी जा सकती; जानते हैं कि यक़ीं टूट रहा है दिल पर; फिर भी अब तर्क ये वहशत नहीं की जा सकती; हब्स का शहर है और उस में किसी भी सूरत; साँस लेने की सहूलत नहीं दी जा सकती; रौशनी के लिए दरवाज़ा खुला रखना है; शब से अब कोई इजाज़त नहीं ली जा सकती; इश्क़ ने हिज्र का आज़ार तो दे रक्खा है; इस से बढ़ कर तो रिआयत नहीं दी जा सकती। |
यह हम ही जानते हैं जुदाई के मोड़ पर; इस दिल का जो भी हाल तुझे देख कर हुआ। |
ये दिल भुलाता नहीं है मोहब्बतें उसकी; पड़ी हुई थी मुझे कितनी आदतें उसकी; ये मेरा सारा सफर उसकी खुशबू में कटा; मुझे तो राह दिखाती थी चाहतें उसकी। |
ये नाम मुमकिन रहेगा मक़ाम मुमकिन नहीं रहेगा; ग़ुरूर लहजे में आ गया तो कलाम मुमकिन नहीं रहेगा; ये बर्फ़-मौसम जो शहर-ए-जाँ में कुछ और लम्हे ठहर गया तो; लहू का दिल की किसी गली में क़याम मुमकिन नहीं रहेगा; तुम अपनी साँसों से मेरी साँसे अलग तो करने लगे हो लेकिन; जो काम आसाँ समझ रहे हो वो काम मुमकिन नहीं रहेगा; वफ़ा का काग़ज़ तो भीग जाएगा बद-गुमानी की बारिशों में; ख़तों की बातें ख़्वाब होंगी पयाम मुमकिन नहीं रहेगा; ये हम मोहब्बत में ला-तअल्लुक़ से हो रहे हैं तू देख लेना; दुआएँ तो ख़ैर कौन देगा सलाम मुमकिन नहीं रहेगा। |
तुमने तो कह दिया कि... तुमने तो कह दिया कि मोहब्बत नहीं मिली; मुझको तो ये भी कहने की मोहलत नहीं मिली; नींदों के देस जाते, कोई ख्वाब देखते; लेकिन दिया जलाने से फुरसत नहीं मिली; तुझको तो खैर शहर के लोगों का खौफ था; और मुझको अपने घर से इजाज़त नहीं मिली; फिर इख्तिलाफ-ए-राय की सूरत निकल पडी; अपनी यहाँ किसी से भी आदत नहीं मिली; बे-जार यूं हुए कि तेरे अहद में हमें; सब कुछ मिला, सुकून की दौलत नहीं मिली। |
इश्क़ करो तो ये भी सोचो... इश्क़ करो तो ये भी सोचो अर्ज़-ए-सवाल से पहले; हिज्र की पूरी रात आती है सुब्ह-ए-विसाल से पहले; दिल का क्या है दिल ने कितने मंज़र देखे लेकिन; आँखें पागल हो जाती है एक ख़याल से पहले; किस ने रेत उड़ाई शब में आँखें खोल के रखी; कोई मिसाल तो होना उस की मिसाल से पहले; कार-ए-मोहब्बत एक सफ़र है इस में आ जाता है; एक ज़वाल-आसार सा रस्ता बाब-ए-कमाल से पहले; इश्क़ में रेशम जैसे वादों और ख़्वाबों का रस्ता; जितना मुमकिन हो तय कर लें गर्द-ए-मलाल से पहले। |
अब किस से कहें और कौन सुने जो हाल तुम्हारे बाद हुआ; इस दिल की झील सी आँखों में एक ख़्वाब बहुत बर्बाद हुआ; यह हिज्र-हवा भी दुश्मन है उस नाम के सारे रंगों की; वो नाम जो मेरे होंठों पर खुशबू की तरह आबाद हुआ। |