Raees Siddique Hindi Shayari

  • और कुछ तेज़ चलीं अब के हवाएँ शायद,
    घर बनाने की मिलीं हम को सज़ाएँ शायद;

    भर गए ज़ख़्म मसीहाई के मरहम के बग़ैर,
    माँ ने की हैं मिरे जीने की दुआएँ शायद;

    मैं ने कल ख़्वाब में ख़ुद अपना लहू देखा है,
    टल गईं सर से मिरे सारी बलाएँ शायद;

    मैं ने कल जिन को अंधेरों से दिलाई थी नजात,
    अब वह लोग मिरे दिल को जलाएँ शायद;

    फिर वही सर है वहीं संग-ए-मलामत उस का,
    दर-गुज़र कर दीं मिरी उस ने ख़ताएँ शायद;

    इस भरोसे पे खिला है मिरा दरवाज़ा 'रईस',
    रूठने वाले कभी लौट के आएँ शायद।
    ~ Raees Siddique