और इस से पहले कि साबित हो जुर्म-ए-ख़ामोशी; हम अपनी राय का इज़हार करना चाहते हैं! |
कभी इश्क़ करो और फिर देखो इस आग में जलते रहने से; कभी दिल पर आँच नहीं आती कभी रंग ख़राब नहीं होता! |
कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए; वो सो गया है मुझे ख़्वाब से जगाते हुए! |
तुझे दुश्मनों की खबर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं; तेरी दास्ताँ कोई और थी मेरा वाकिया कोई और है। |