ये अदा-ए-बे-नियाज़ी तुझे बेवफ़ा मुबारक; मगर ऐसी बे-रुख़ी क्या कि सलाम तक न पहुँचे! *अदा-ए-बे-नियाज़ी: लापरवाही की हवा |
वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले; मगर अपने अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं! |
नयी सुब्ह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है; ये सहर भी रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे! |
मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे; मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे! मेरे दाग़-ए-दिल से है रौशनी इसी रौशनी से है ज़िंदगी; मुझे डर है ऐ मिरे चारा-गर ये चराग़ तू ही बुझा न दे! *जाँ-ब-लब: जिसके प्राण होंठों पर हों |
जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील'; मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया! |
मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम; मोहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है! *पैहम: लगातार |
काफ़ी है मेरे दिल की तसल्ली को यही बात; आप आ न सके आप का पैग़ाम तो आया! |
जाने वाले से मुलाक़ात न होने पाई; दिल की दिल में ही रही बात न होने पाई! |
मेरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का इल्म नहीं; जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं! * ख़िज़ाँ: पतझड़ |
उन्हें अपने दिल की ख़बरें मेरे दिल से मिल रही हैं: मैं जो उन से रूठ जाऊँ तो पयाम तक न पहुँचे ! |