Syed Wasi Shah Hindi Shayari

  • उदास रातों में तेज़ काफ़ी की तल्ख़ियों में,
    वो कुछ ज़ियादा ही याद आता है सर्दियों में;

    मुझे इजाज़त नहीं है उस को पुकारने की,
    जो गूँजता है लहू में सीने की धड़कनों में;

    वो बचपना जो उदास राहों में खो गया था,
    मैं ढूँढता हूँ उसे तुम्हारी शरारतों में;

    उसे दिलासे तो दे रहा हूँ मगर से सच है,
    कहीं कोई ख़ौफ़ बढ़ रहा है तसल्लियों में;

    तुम अपनी पोरों से जाने क्या लिख गए थे जानाँ,
    चराग़ रौशन हैं अब भी मेरी हथेलियों में;

    हर एक मौसम में रौशनी सी बिखेरते हैं,
    तुम्हारे ग़म के चराग़ मेरी उदासियों में।
    ~ Syed Wasi Shah
  • आँखों से मेरे इस लिए लाली नहीं जाती;
    यादों से कोई रात खा़ली नहीं जाती;

    अब उम्र, ना मौसम, ना रास्‍ते के वो पत्‍ते;
    इस दिल की मगर ख़ाम ख्‍़याली नहीं जाती;

    माँगे तू अगर जान भी तो हँस कर तुझे दे दूँ;
    तेरी तो कोई बात भी टाली नहीं जाती;

    मालूम हमें भी हैं बहुत से तेरे क़िस्से;
    पर बात तेरी हमसे उछाली नहीं जाती;

    हमराह तेरे फूल खिलाती थी जो दिल में
    अब शाम वहीं दर्द से ख़ाली नहीं जाती;

    हम जान से जाएंगे तभी बात बनेगी;
    तुमसे तो कोई बात निकाली नहीं जाती।
    ~ Syed Wasi Shah
  • तो मैं भी ख़ुश हूँ कोई उस से जा के कह देना;
    अगर वो ख़ुश है मुझे बे-क़रार करते हुए;

    तुम्हें ख़बर ही नहीं है कि कोई टूट गया;
    मोहब्बतों को बहुत पाएदार करते हुए;

    मैं मुस्कुराता हुआ आईने में उभरूँगा;
    वो रो पड़ेगी अचानक सिंघार करते हुए;

    मुझे ख़बर थी कि अब लौट कर न आऊँगा;
    सो तुझ को याद किया दिल पे वार करते हुए;

    ये कह रही थी समुंदर नहीं ये आँखें हैं;
    मैं इन में डूब गया ए'तिबार करते हुए;

    भँवर जो मुझ में पड़े हैं वो मैं ही जानता हूँ;
    तुम्हारे हिज्र के दरिया को पार करते हुए।
    ~ Syed Wasi Shah
  • आँखों से मेरे इस लिए लाली नहीं जाती;
    यादों से कोई रात खा़ली नहीं जाती;

    अब उम्र, ना मौसम, ना रास्‍ते के वो पत्‍ते;
    इस दिल की मगर ख़ाम ख्‍़याली नहीं जाती;

    माँगे तू अगर जान भी तो हँस कर तुझे दे दूँ;
    तेरी तो कोई बात भी टाली नहीं जाती;

    मालूम हमें भी हैं बहुत से तेरे क़िस्से;
    पर बात तेरी हमसे उछाली नहीं जाती;

    हमराह तेरे फूल खिलाती थी जो दिल में;
    अब शाम वहीं दर्द से ख़ाली नहीं जाती;

    हम जान से जाएंगे तभी बात बनेगी;
    तुमसे तो कोई बात निकाली नहीं जाती।
    ~ Syed Wasi Shah
  • समुंदर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं;
    तिरी आँखों को पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं;

    तुम्हारा नाम लिखने की इजाज़त छिन गई जब से;
    कोई भी लफ़्ज़ लिखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं;

    तिरी यादों की ख़ुशबू खिड़कियों में रक़्स करती है;
    तिरे ग़म में सुलगता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं;

    न जाने हो गया हूँ इस क़दर हस्सास मैं कब से;
    किसी से बात करता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं;

    हज़ारों मौसमों की हुक्मरानी है मिरे दिल पर;
    'वसी' मैं जब भी हँसता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं।
    ~ Syed Wasi Shah
  • तुम्हारे चाँद से चेहरे पे ग़म अच्छे नहीं लगते;
    हमें कह दो चले जाओ जो हम अच्छे नहीं लगते;
    हमें वो ज़ख्म दो जाना जो सारी उम्र ना भर पायें;
    जो जल्दी भर के मिट जाएं वो ज़ख्म अच्छे नहीं लगते।
    ~ Syed Wasi Shah
  • कोई मलाल कोई आरजू नहीं करता;
    तुम्हारे बाद यह दिल गुफ्तगू नहीं करता;
    कोई न कोई चीज़ मेरी टूट जाती है;
    तुम्हारी याद से जब भी वज़ू नहीं करता।

    अनुवाद:
    वज़ू = पवित्र
    ~ Syed Wasi Shah
  • चूमना क्या उसे आँखों से लगाना कैसा;
    फूल जो कोट से गिर जाये उठाना कैसा;
    अपने होंठों की हरारत से जगाओ मुझको;
    यूं सदाओं से दम-ए-सुबह जगाना कैसा!
    ~ Syed Wasi Shah