उदास रातों में तेज़ काफ़ी की तल्ख़ियों में, वो कुछ ज़ियादा ही याद आता है सर्दियों में; मुझे इजाज़त नहीं है उस को पुकारने की, जो गूँजता है लहू में सीने की धड़कनों में; वो बचपना जो उदास राहों में खो गया था, मैं ढूँढता हूँ उसे तुम्हारी शरारतों में; उसे दिलासे तो दे रहा हूँ मगर से सच है, कहीं कोई ख़ौफ़ बढ़ रहा है तसल्लियों में; तुम अपनी पोरों से जाने क्या लिख गए थे जानाँ, चराग़ रौशन हैं अब भी मेरी हथेलियों में; हर एक मौसम में रौशनी सी बिखेरते हैं, तुम्हारे ग़म के चराग़ मेरी उदासियों में। |
आँखों से मेरे इस लिए लाली नहीं जाती; यादों से कोई रात खा़ली नहीं जाती; अब उम्र, ना मौसम, ना रास्ते के वो पत्ते; इस दिल की मगर ख़ाम ख़्याली नहीं जाती; माँगे तू अगर जान भी तो हँस कर तुझे दे दूँ; तेरी तो कोई बात भी टाली नहीं जाती; मालूम हमें भी हैं बहुत से तेरे क़िस्से; पर बात तेरी हमसे उछाली नहीं जाती; हमराह तेरे फूल खिलाती थी जो दिल में अब शाम वहीं दर्द से ख़ाली नहीं जाती; हम जान से जाएंगे तभी बात बनेगी; तुमसे तो कोई बात निकाली नहीं जाती। |
तो मैं भी ख़ुश हूँ कोई उस से जा के कह देना; अगर वो ख़ुश है मुझे बे-क़रार करते हुए; तुम्हें ख़बर ही नहीं है कि कोई टूट गया; मोहब्बतों को बहुत पाएदार करते हुए; मैं मुस्कुराता हुआ आईने में उभरूँगा; वो रो पड़ेगी अचानक सिंघार करते हुए; मुझे ख़बर थी कि अब लौट कर न आऊँगा; सो तुझ को याद किया दिल पे वार करते हुए; ये कह रही थी समुंदर नहीं ये आँखें हैं; मैं इन में डूब गया ए'तिबार करते हुए; भँवर जो मुझ में पड़े हैं वो मैं ही जानता हूँ; तुम्हारे हिज्र के दरिया को पार करते हुए। |
आँखों से मेरे इस लिए लाली नहीं जाती; यादों से कोई रात खा़ली नहीं जाती; अब उम्र, ना मौसम, ना रास्ते के वो पत्ते; इस दिल की मगर ख़ाम ख़्याली नहीं जाती; माँगे तू अगर जान भी तो हँस कर तुझे दे दूँ; तेरी तो कोई बात भी टाली नहीं जाती; मालूम हमें भी हैं बहुत से तेरे क़िस्से; पर बात तेरी हमसे उछाली नहीं जाती; हमराह तेरे फूल खिलाती थी जो दिल में; अब शाम वहीं दर्द से ख़ाली नहीं जाती; हम जान से जाएंगे तभी बात बनेगी; तुमसे तो कोई बात निकाली नहीं जाती। |
समुंदर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं; तिरी आँखों को पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं; तुम्हारा नाम लिखने की इजाज़त छिन गई जब से; कोई भी लफ़्ज़ लिखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं; तिरी यादों की ख़ुशबू खिड़कियों में रक़्स करती है; तिरे ग़म में सुलगता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं; न जाने हो गया हूँ इस क़दर हस्सास मैं कब से; किसी से बात करता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं; हज़ारों मौसमों की हुक्मरानी है मिरे दिल पर; 'वसी' मैं जब भी हँसता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं। |
तुम्हारे चाँद से चेहरे पे ग़म अच्छे नहीं लगते; हमें कह दो चले जाओ जो हम अच्छे नहीं लगते; हमें वो ज़ख्म दो जाना जो सारी उम्र ना भर पायें; जो जल्दी भर के मिट जाएं वो ज़ख्म अच्छे नहीं लगते। |
कोई मलाल कोई आरजू नहीं करता; तुम्हारे बाद यह दिल गुफ्तगू नहीं करता; कोई न कोई चीज़ मेरी टूट जाती है; तुम्हारी याद से जब भी वज़ू नहीं करता। अनुवाद: वज़ू = पवित्र |
चूमना क्या उसे आँखों से लगाना कैसा; फूल जो कोट से गिर जाये उठाना कैसा; अपने होंठों की हरारत से जगाओ मुझको; यूं सदाओं से दम-ए-सुबह जगाना कैसा! |