वो चुपके से ज़रूर आएंगे मिलने मुझसे, हकीकत में नहीं तो सपने में ही सही। |
काश कोई मिले इस तरह के फिर जुदा ना हो, वो समझे मेरे मिज़ाज़ को और कभी खफा ना हो। |
तुम्हें जब कभी मिले फुर्सतें मेरे दिल से बोझ उतार दो, मैं बहुत दिनों से उदास हूँ मुझे कोई शाम उधार दो। |
चंद साँसें बची हैं आखिरी बार दीदार दे दो, झूठा ही सही एक बार मगर तुम प्यार दे दो, ज़िन्दगी वीरान थी और मौत भी गुमनाम ना हो, मुझे गले लगा लो फिर मौत मुझे हजार दे दो। |
कितने अरमानो को दफनाये बैठा हूँ, कितने ज़ख्मो को दबाये बैठा हूँ, मिलना मुश्किल है उनसे इस दौर में, फिर भी दीदार की आस लगाये बैठा हूँ। |
खुदा का शुक्र है कि ख्वाब बना दिये, वरना तुम्हें देखने की तो बस हसरत ही रह जाती। |
ये आरज़ू भी बड़ी चीज़ है मगर हमदम; विसाल-ए-यार फ़क़त आरज़ू की बात नहीं। |
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो; ना जाने कसी गली में ज़िन्दगी की शाम हो। |
हो सके तो तुम अपना एक वादा निभाने आ जाना; मेरी प्यासी आँखों को अपना दीदार करवाने आ जाना; बड़ी हसरत थी तुम्हारी बाँहों में बिातायें कुछ पल; अगर यह साँस थम गयी तो एक बार मेरी लाश से लिपटने आ जाना। |
थक गया हूँ रोटी के पीछे भाग भाग कर; थक गया हूँ सोती रातों में जाग जाग कर; काश मिल जाये वही बीता हुआ बचपन; जब माँ खिलाती थी भाग भाग कर और सुलाती थी जाग जाग कर। |