घर उसने क्या बनाया मस्जिद के सामने; चाहत ने उसकी हमें नमाजी बना दिया। |
आज मुझे फिर इस बात का गुमान हो; मस्जिद में भजन, मंदिरों में अज़ान हो; खून का रंग फिर एक जैसा हो; तुम मनाओ दिवाली, मैं कहूं रमजान हो। |
चल रहे है जमाने में रिश्वतो के सिलसिले; तुम भी कुछ ले-दे कर, मुझसे मोहब्बत कर लो.. |
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में कि मेरी नज़र को ख़बर न हो; तु ही रहे मेरी निगाहों में, बस किसी और का ज़िक्र ना हो; इतनी सी गुजारिश है मेरी एक रात इस तरह नवाज़ दे मुझे; फिर गम नही मुझे चाहे उस रात की कभी सहर न हो। |
अब भी ताज़ा हैं जख्म सीने में; बिन तेरे क्या रखा हैं जीने में; हम तो जिंदा हैं तेरा साथ पाने को; वर्ना देर कितनी लगती हैं जहर पीने में। |
दर्द दिलों के कम हो जाते; मैं और तुम अगर हम हो जाते; कितने हसीन आलम हो जाते; मैं और तुम गर हम हो जाते। |
मोहब्बत की आजमाइश दे दे कर थक गया हूँ ऐ खुदा; किस्मत मेँ कोई ऐसा लिख दे, जो मौत तक वफा करे.. |
आग के पास कभी मोम को ला कर देखू; हो इजाजत तो तुझे तुझे हाथ लगा कर देखू; दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है; सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगाकर देखू। |
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो; चार किताबें पढ़कर वो भी हमारे जैसे हो जाएंगे। |
ले तो लूँ सोते में उसके पांव का बोसा, मगर; ऐसी बातों से वो काफ़िर बदनुमा हो जाएगा। |