माँगते थे रोज़ दुआ में सुकून ख़ुदा से; सोचते थे वो चैन हम लाएं कहाँ से; किसी रोज एक प्यासे को पानी क्या पिला दिया; लगा जैसे खुदा ने सुकून का पता बता दिया। |
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो; ना जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए। |
पानी फेर दो इन पन्नों पर ताकि धुल जाए स्याही सारी; ज़िन्दगी फिर से लिखने का मन होता है कभी-कभी। |
ये सोच कर की शायद वो खिड़की से झाँक ले; उसकी गली के बच्चे आपस में लड़ा दिए मैंने। |
आपको अपने ज़ख्म दिखाना चाहता हूँ मैं; मगर क्या करूँ बहुत ही दूर हैं आप; आपको चाहता हूँ बनाना साथी अपना; मगर मानता हूँ, रस्मों के हाथों मजबूर हैं आप। |
काश कि वो लौट के आयें मुझसे ये कहने; कि तुम कौन होते हो मुझसे बिछड़ने वाले। |
ग़ालिब ने यह कह कर, तोड़ दी माला; गिन कर क्यों नाम लूँ उसका, जो बेहिसाब देता है। |
ना जी भर के देखा, ना कुछ बात की; बड़ी आरज़ू थी हम को मुलाक़ात की। |
फ़ुर्सतें मिलें जब भी रंजिशें भुला देना; कौन जाने सांसोंं की मोहलतें कहाँ तक है। |
खुदा को भी है आरज़ू तेरी; हमारी तो भला औकात क्या है। |