शोहरत बेशक चुपचाप गुजर जाये; कम्बख्त बदनामी बड़ा शोर करती है! |
ख़ुद्दारी वजह रही कि ज़माने को कभी हज़म नहीं हुए हम, पर ख़ुद की नज़रों में, यकीं मानो, कभी कम नहीं हुए हम! |
बड़ी तेज़ है आज, ये यादों की शीतलहर; चलो शायरियों का ही अलाव तापा जाए! |
अब खुद से मिलने को मन करता है; लोगो से सुना है कि बहुत बुरे है हम! |
शर्म ओ हया का अख़्तियार इतना रहा हम पर; जिसको चाहा उमर भर, उसी को जता ना सके! |
ज़ायां ना कर अपने अल्फाज किसी के लिए; खामोश रह कर देख तुझे समझता कौन है! |
लम्हे लम्हे मैं बसी है तुम्हारी यादों की महक; यह बात और है मेरी नज़रों से दूर हो तुम! |
झट से बदल दूं, इतनी न हैसियत न आदत है मेरी; रिश्ते हों या लिबास, मैं बरसों चलाता हूँ! |
सब फूल लेकर गए मैं कांटे ही उठा लाया; पड़े रहते तो किसी अपने के पाँव मे जख्म दे| |
सादगी तो देखो उन नज़रो की; हमसे बचने की कोशिष में बार बार हमें ही देखती है! |