इज़हार Hindi Shayari

  • हम भी मजबूरियों का उज़्र करें;<br/>
फिर कहीं और मुब्तला हो जाएँ!Upload to Facebook
    हम भी मजबूरियों का उज़्र करें;
    फिर कहीं और मुब्तला हो जाएँ!
    ~ Ahmad Faraz
  • मुझ से लाग़र तेरी आँखों में खटकते तो रहे;<br/>
तुझ से नाज़ुक मेरी नज़रों में समाते भी नहीं!Upload to Facebook
    मुझ से लाग़र तेरी आँखों में खटकते तो रहे;
    तुझ से नाज़ुक मेरी नज़रों में समाते भी नहीं!
    ~ Daagh Dehlvi
  • हथेली पर रखकर नसीब, तु क्यो अपना मुकद्दर ढूँढ़ता है;<br/>
सीख उस समन्दर से, जो टकराने के लिए पत्थर ढूँढ़ता है!Upload to Facebook
    हथेली पर रखकर नसीब, तु क्यो अपना मुकद्दर ढूँढ़ता है;
    सीख उस समन्दर से, जो टकराने के लिए पत्थर ढूँढ़ता है!
  • शाम-ए-ग़म कुछ उस निग़ाह-ए-नाज़ की बातें करो;<br/>
बेखुदी बढ़ती चली है, राज़ की बातें करो!<br/><br/>

शाम-ए-ग़म: दर्द भरी शाम<br/>
निग़ाह-ए-नाज़: प्रेमिका की नज़र<br/>
बेखुदी: बेहोशीUpload to Facebook
    शाम-ए-ग़म कुछ उस निग़ाह-ए-नाज़ की बातें करो;
    बेखुदी बढ़ती चली है, राज़ की बातें करो!

    शाम-ए-ग़म: दर्द भरी शाम
    निग़ाह-ए-नाज़: प्रेमिका की नज़र
    बेखुदी: बेहोशी
    ~ Firaq Gorakhpuri
  • झूठ कहूँ तो लफ़्ज़ों का दम घुटता है,<br/>
सच कहूँ तो लोग खफा हो जाते हैं!Upload to Facebook
    झूठ कहूँ तो लफ़्ज़ों का दम घुटता है,
    सच कहूँ तो लोग खफा हो जाते हैं!
  • शाम-ए-ग़म कुछ उस निग़ाह-ए-नाज़ की बातें करो;<br/>
बेखुदी बढ़ती चली है, राज़ की बातें करो!Upload to Facebook
    शाम-ए-ग़म कुछ उस निग़ाह-ए-नाज़ की बातें करो;
    बेखुदी बढ़ती चली है, राज़ की बातें करो!
    ~ Firaq Gorakhpuri
  • बहुत शौक था मुझे सबको जोडकर रखने का,<br/>
होश तब आया जब खुद के वजूद के टुकडे हो गये।Upload to Facebook
    बहुत शौक था मुझे सबको जोडकर रखने का,
    होश तब आया जब खुद के वजूद के टुकडे हो गये।
  • आगे आती थी हाल-ए-दिल पर हंसी;<br/>
अब किसी बात पर नहीं आती!

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    आगे आती थी हाल-ए-दिल पर हंसी;
    अब किसी बात पर नहीं आती!
    ~ Mirza Ghalib
  • आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक;<br/>
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक!Upload to Facebook
    आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक;
    कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक!
    ~ Mirza Ghalib
  • कपड़े से तो, परदा होता है साहब;<br/>
हिफाज़त तो, निगाहों से होती है|Upload to Facebook
    कपड़े से तो, परदा होता है साहब;
    हिफाज़त तो, निगाहों से होती है|