ग़ज़ल Hindi Shayari

  • अपने हाथों की लकीरों में...

    अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको;
    मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको;

    मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने;
    ये तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको;

    ख़ुद को मैं बाँट ना डालूँ कहीं दामन-दामन;
    कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको;

    बादाह फिर बादाह है मैं ज़हर भी पी जाऊँ 'क़तील';
    शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको।
    ~ Qateel Shifai
  • लोग हर मोड़ पे...

    लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं;
    इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं;

    मैं न जुगनू हूँ, दिया हूँ न कोई तारा हूँ;
    रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं;

    नींद से मेरा त'अल्लुक़ ही नहीं बरसों से;
    ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं;

    मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए;
    और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं।
    ~ Rahat Indori
  • तेरे इश्क़ की इन्तहा...

    तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ;
    मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ;

    सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी;
    कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ;

    ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को;
    कि मैं आप का सामना चाहता हूँ;

    कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल;
    चिराग़-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ;

    भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी;
    बड़ा बे-अदब हूँ, सज़ा चाहता हूँ।
    ~ Allama Iqbal
  • ज़िन्दगी से यही ग़िला...

    ज़िन्दगी से यही ग़िला है मुझे;
    तू बहुत देर से मिला है मुझे;

    हमसफ़र चाहिए हुजूम नहीं;
    मुसाफ़िर ही काफ़िला है मुझे;

    दिल धड़कता नहीं सुलगता है;
    वो जो ख़्वाहिश थी आबला है मुझे;

    लबकुशा हूँ तो इस यक़ीन के साथ;
    क़त्ल होने का हौसला है मुझे;

    कौन जाने कि चाहतों में 'फ़राज़';
    क्या गँवाया है क्या मिला है मुझे।
    ~ Ahmad Faraz
  • दोस्त बनकर भी नहीं...

    दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला;
    वो ही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला;

    क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उससे;
    वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जाने वाला;

    क्या ख़बर थी जो मेरी जाँ में घुला रहता है;
    है वही मुझको सर-ए-दार भी लाने वाला;

    मैंने देखा है बहारों में चमन को जलते;
    है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला;

    तुम तक़ल्लुफ़ को भी इख़लास समझते हो 'फ़राज़';
    दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला।
    ~ Ahmad Faraz
  • जो भी दुख याद न था...

    जो भी दुख याद न था याद आया;
    आज क्या जानिए क्या याद आया;

    याद आया था बिछड़ना तेरा;
    फिर नहीं याद कि क्या याद आया;

    हाथ उठाए था कि दिल बैठ गया;
    जाने क्या वक़्त-ए-दुआ याद आया;

    जिस तरह धुंध में लिपटे हुए फूल;
    इक इक नक़्श तेरा याद आया;

    ये मोहब्बत भी है क्या रोग 'फ़राज़';
    जिसको भूले वो सदा याद आया।
    ~ Ahmad Faraz
  • गुज़रे दिनों की याद...

    गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे;
    गुज़रूँ जो उस गली से तो ठण्डी हवा लगे;

    मेहमान बनके आए किसी रोज़ अगर वो शख्स;
    उस रोज़ बिन सजाए मेरा घर सजा लगे;

    मैं इसलिए मनाता नहीं वस्ल की खुशी;
    मेरे रकीब की न मुझे बददुआ लगे;

    वो कहत दोस्ती का पड़ा है कि इन दिनों;
    जो मुस्कुरा के बात करे आशना लगे;

    तर्क-ए-वफ़ा के बाद ये उसकी अदा 'कतील';
    मुझको सताए कोई तो उसको बुरा लगे।
    ~ Qateel Shifai
  • कठिन है राह-गुज़र थोड़ी देर साथ चलो...

    कठिन है राह-गुज़र थोड़ी देर साथ चलो;
    बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी देर साथ चलो;

    तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है;
    ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो;

    नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं;
    बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो;

    ये एक शब की मुलाक़ात भी गनीमत है;
    किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो;

    तवाफ़-ए-मंज़िल-ए-जाना हमें भी करना है;
    'फ़राज़' तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो।
    ~ Ahmad Faraz
  • पहले तो अपने दिल की...

    पहले तो अपने दिल की रज़ा जान जाइए;
    फिर जो निगाह-ए-यार कहे मान जाइए;

    पहले मिजाज़-ए-राहगुजर जान जाइए;
    फिर गर्द-ए-राह जो भी कहे मान जाइए;

    कुछ कह रहीं हैं आपके सीने की धड़कनें;
    मेरी सुनें तो दिल का कहा मान जाइए;

    इक धूप सी जमी है निगाहों के आसपास;
    ये आप हैं तो आप पे कुर्बान जाइए;

    शायद हुजूर से कोई निस्बत हमें भी हो;
    आँखों में झांककर हमें पहचान जाइए!
    ~ Qateel Shifai
  • पहले तो अपने दिल की...

    पहले तो अपने दिल की रज़ा जान जाइए;
    फिर जो निगाह-ए-यार कहे मान जाइए;

    पहले मिजाज़-ए-राहगुजर जान जाइए;
    फिर गर्द-ए-राह जो भी कहे मान जाइए;

    कुछ कह रहीं हैं आपके सीने की धड़कनें;
    मेरी सुनें तो दिल का कहा मान जाइए;

    इक धूप सी जमी है निगाहों के आसपास;
    ये आप हैं तो आप पे कुर्बान जाइए;

    शायद हुजूर से कोई निस्बत हमें भी हो;
    आँखों में झांककर हमें पहचान जाइए।
    ~ Qateel Shifai