अपने हाथों की लकीरों में... अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको; मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको; मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने; ये तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको; ख़ुद को मैं बाँट ना डालूँ कहीं दामन-दामन; कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको; बादाह फिर बादाह है मैं ज़हर भी पी जाऊँ 'क़तील'; शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको। |
लोग हर मोड़ पे... लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं; इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं; मैं न जुगनू हूँ, दिया हूँ न कोई तारा हूँ; रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं; नींद से मेरा त'अल्लुक़ ही नहीं बरसों से; ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं; मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए; और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं। |
तेरे इश्क़ की इन्तहा... तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ; मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ; सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी; कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ; ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को; कि मैं आप का सामना चाहता हूँ; कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल; चिराग़-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ; भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी; बड़ा बे-अदब हूँ, सज़ा चाहता हूँ। |
ज़िन्दगी से यही ग़िला... ज़िन्दगी से यही ग़िला है मुझे; तू बहुत देर से मिला है मुझे; हमसफ़र चाहिए हुजूम नहीं; मुसाफ़िर ही काफ़िला है मुझे; दिल धड़कता नहीं सुलगता है; वो जो ख़्वाहिश थी आबला है मुझे; लबकुशा हूँ तो इस यक़ीन के साथ; क़त्ल होने का हौसला है मुझे; कौन जाने कि चाहतों में 'फ़राज़'; क्या गँवाया है क्या मिला है मुझे। |
दोस्त बनकर भी नहीं... दोस्त बनकर भी नहीं साथ निभाने वाला; वो ही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला; क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उससे; वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जाने वाला; क्या ख़बर थी जो मेरी जाँ में घुला रहता है; है वही मुझको सर-ए-दार भी लाने वाला; मैंने देखा है बहारों में चमन को जलते; है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला; तुम तक़ल्लुफ़ को भी इख़लास समझते हो 'फ़राज़'; दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला। |
जो भी दुख याद न था... जो भी दुख याद न था याद आया; आज क्या जानिए क्या याद आया; याद आया था बिछड़ना तेरा; फिर नहीं याद कि क्या याद आया; हाथ उठाए था कि दिल बैठ गया; जाने क्या वक़्त-ए-दुआ याद आया; जिस तरह धुंध में लिपटे हुए फूल; इक इक नक़्श तेरा याद आया; ये मोहब्बत भी है क्या रोग 'फ़राज़'; जिसको भूले वो सदा याद आया। |
गुज़रे दिनों की याद... गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे; गुज़रूँ जो उस गली से तो ठण्डी हवा लगे; मेहमान बनके आए किसी रोज़ अगर वो शख्स; उस रोज़ बिन सजाए मेरा घर सजा लगे; मैं इसलिए मनाता नहीं वस्ल की खुशी; मेरे रकीब की न मुझे बददुआ लगे; वो कहत दोस्ती का पड़ा है कि इन दिनों; जो मुस्कुरा के बात करे आशना लगे; तर्क-ए-वफ़ा के बाद ये उसकी अदा 'कतील'; मुझको सताए कोई तो उसको बुरा लगे। |
कठिन है राह-गुज़र थोड़ी देर साथ चलो... कठिन है राह-गुज़र थोड़ी देर साथ चलो; बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी देर साथ चलो; तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है; ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो; नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं; बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो; ये एक शब की मुलाक़ात भी गनीमत है; किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो; तवाफ़-ए-मंज़िल-ए-जाना हमें भी करना है; 'फ़राज़' तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो। |
पहले तो अपने दिल की... पहले तो अपने दिल की रज़ा जान जाइए; फिर जो निगाह-ए-यार कहे मान जाइए; पहले मिजाज़-ए-राहगुजर जान जाइए; फिर गर्द-ए-राह जो भी कहे मान जाइए; कुछ कह रहीं हैं आपके सीने की धड़कनें; मेरी सुनें तो दिल का कहा मान जाइए; इक धूप सी जमी है निगाहों के आसपास; ये आप हैं तो आप पे कुर्बान जाइए; शायद हुजूर से कोई निस्बत हमें भी हो; आँखों में झांककर हमें पहचान जाइए! |
पहले तो अपने दिल की... पहले तो अपने दिल की रज़ा जान जाइए; फिर जो निगाह-ए-यार कहे मान जाइए; पहले मिजाज़-ए-राहगुजर जान जाइए; फिर गर्द-ए-राह जो भी कहे मान जाइए; कुछ कह रहीं हैं आपके सीने की धड़कनें; मेरी सुनें तो दिल का कहा मान जाइए; इक धूप सी जमी है निगाहों के आसपास; ये आप हैं तो आप पे कुर्बान जाइए; शायद हुजूर से कोई निस्बत हमें भी हो; आँखों में झांककर हमें पहचान जाइए। |