वो तो दिवानी थी मुझे तन्हा छोड़ गई, खुद न रुकी तो अपना साया छोड़ गई; दुख न सही गम इस बात का है, आँखों से करके वादा होंठो से तोड़ गई! |
अक्सर यूँ ही एक सवाल आता है उमड़ कर जेहन में मेरे; आज बे वजह क्यों भूल गये कल तक बेवजह चाहने वाले! |
आईना कब किसको सच बता पाया है; जब देखा बांया, तो दांया ही नजर आया है! |
चलो चलते हैं उस जहान में जहाँ रिश्तों का नाम नहीं पूछा जाता; धडकनों पर कोई बंदिश नहीं ख्वाबों पर कोई इलज़ाम नहीं दिया जाता! |
हम ने मोहब्बत के नशे में आ कर उसे खुदा बना डाला; होश तब आया जब उस ने कहा, कि खुदा किसी एक का नहीं होता! |
बेचैन बहुत हूँ मगर पैगाम किसको दूँ; जो खुद ना समझ पाया वो इल्ज़ाम किसको दूँ। |
जब से उसने कहा है कौन हूँ मैं, तब से मैं कौन हूँ पता ही नहीं! |
फिर वही बात कर गया लम्हा, आँख झपकी गुज़र और गया लम्हा! |
शिकवा करने गये थे और इबादत सी हो गई, तुझे भुलाने की ज़िद्द थी, मगर तेरी आदत सी हो गई! |
होगी कितनी चाहत उस दिल में, जो खुद ही मान जाये कुछ पल खफा होने के बाद! |