किसको क्या मिले इसका कोई हिसाब नहीं; तेरे पास रूह नहीं मेरे पास लिबास नहीं! |
उम्र भर मिलने नहीं देती हैं अब तो रंजिशें; वक़्त हम से रूठ जाने की अदा तक ले गया! |
किसको बर्दाश्त है "साहब" तरक़्क़ी आजकल दूसरों की; लोग तो अर्थी की भीड़ देखकर भी जल जाते है! |
अपनी यादों को मिटाना बहुत कठिन है, अपने गम को भूल जाना बहुत कठिन है। जब राहे-मयखानों पर चलते हैं कदम, होश में लौट कर आना बहुत कठिन है। |
मैं तो इस वास्ते चुप हूँ की तमाशा ना बने, और तू समझता है मुझे तुझसे कोई गिला नहीं! |
शिकवे आँखों से गिर पड़े वरना; होठों से शिकायत कब की हमने ! |
समझ में नही आता की किस पर भरोसा करूँ; यहाँ तो लोग नफरत भी मोहब्बत की तरह ही करते है! |
उँगलियाँ मेरी वफ़ा पर न उठाना लोगो, जिसको शक हो वो मुझसे निबाह कर देखे। |
देख कर मेरी आँखें, एक फकीर कहने लगा; पलकें तुम्हारी नाज़ुक है खवाबों का वज़न कम कीजिये! |
मैंने हवा के शौक में खोली थी खिड़कियां, पर तेरी यादों का धुआँ मेरे घर में आ गया! |