लहजे में बदजुबानी, चेहरे पे नक़ाब लिए फिरते हैं; जिनके ख़ुद के बही-खाते बिगड़े हैं, वो मेरा हिसाब लिए फिरते है। |
अधूरी हसरतों का आज भी इलज़ाम है तुम पर, अगर तुम चाहते तो ये मोहब्बत ख़त्म ना होती। |
दो लफ्ज़ लबों पर गुमसुम से बैठे थे, न वो कुछ कह सके न हम कुछ कह सके; ज़ुबाँ भी आज ख़ामोश से बैठे थे, न वो कुछ सुन सके न हम कुछ सुन सके। |
सबूतों की ज़रूरत पड़ रही है, यक़ीनन दूरियाँ अब बढ़ रही हैं। |
रूकता भी नहीं ठीक से चलता भी नही, यह दिल है के तेरे बाद सँभलता ही नही। |
सिखा दी बेरुखी भी ज़ालिम ज़माने ने तुम्हें, कि तुम जो सीख लेते हो हम पर आज़माते हो। |
तुझसे मैँ इजहार-ए-मोहब्बत इसलिए भी नही करता, सुना है बरसने के बाद बादलो की अहमियत नही रहती। |
जिसने कभी चाहतों का पैगाम लिखा था, जिसने अपना सब कुछ मेरे नाम लिखा था, सुना है आज उसे मेरे ज़िक्र से भी नफरत है, जिसने कभी अपने दिल पर मेरा नाम लिखा था। |
समेट कर ले जाओ अपने झूठे वादों के अधूरे क़िस्से, अगली मोहब्बत में तुम्हें फिर इनकी ज़रूरत पड़ेगी। |
अगर तुम समझ पाते मेरी चाहत की इन्तहा, तो हम तुमसे नही तुम हमसे मोहब्बत करते। |