वक़्त का पता नहीं चलता अपनों के साथ, पर अपनों का पता चलता है, वक़्त के साथ; वक़्त नहीं बदलता अपनों के साथ, पर अपने ज़रूर बदल जाते हैं वक़्त के साथ। |
नज़र और नसीब के मिलने का इत्तेफ़ाक़ कुछ ऐसा है; कि नज़र को पसंद हमेशा वही चीज़ आती है, जो नसीब में नहीं होती है। |
है किस्मत हमारी आसमान में चमकते सितारे जैसी; लोग अपनी तमन्ना के लिए हमारे टूटने का इंतज़ार करते हैं। |
वो लफ्ज कहां से लाऊं जो तेरे दिल को मोम कर दें; मेरा वजूद पिघल रहा है तेरी बेरूखी से। |
कैसे करुं भरोसा गैरों के प्यार पर; यहाँ अपने ही मजा लेते हैं अपनों की हार पर। |
कितना इख़्तियार था उसे अपनी चाहत पर; जब चाहा याद किया जब चाहा भुला दिया; बहुत अच्छे से जानता है वो मुझे बहलाने के तरीके; जब चाहा हँसा दिया जब चाहा रुला दिया। |
कितना अजीब है लोगों का अंदाज़-ए-मोहब्बत; रोज़ एक नया ज़ख्म देकर कहते हैं अपना ख्याल रखना। |
ना छेड़ क़िस्सा वो उल्फत का; बड़ी लम्बी यह कहानी है; हारे नहीं हम अपनी ज़िन्दगी से; यह तो किसी अपने की मेहरबानी है। |
वादे वफ़ा करके क्यों मुकर जाते हैं लोग; किसी के दिल को क्यों तड़पाते हैं लोग; अगर दिल लगाकर निभा नहीं सकते; तो फिर क्यों दिल से इतना लगाते हैं लोग।q |
लोग तो बेवजह ही खरीदते हैं आईने; आँखें बंद करके भी अपनी हकीकत जानी जा सकती है। |