तुमको समझाता हूँ इसलिए ए दोस्त; क्योंकि सबको ही आज़मा चुका हूँ मैं; कहीं तुमको भी पछताना ना पड़े यहाँ; कई हसीनों से धोखा खा चुका हूँ मैं। |
कदम यूँ ही डगमगा गए रास्ते में; वैसे संभालना हम भी जानते थे; ठोकर भी लगी तो उसी पत्थर से; जिसे हम अपना मानते थे। |
किया अपना बन कर जो तूने सनम; ना गैरों से वो कभी गैर करे; अगर हमें छोड़ कर जाना चाहते हो; जाओ चले जाओ अल्लाह खैर करे। |
तुने जो मिटा डाला था मुझको बेवफा; मेरी पाक मुहब्बत की एक तासीर अभी बाकी है। |
एक इंसान मिला जो जीना सिखा गया; आंसुओं की नमी को पीना सिखा गया; कभी गुज़रती थी वीरानों में ज़िंदगी; वो शख्स वीरानों में महफ़िल सजा गया। |
काफ़िर हुए थे जिस की मोहब्बत में कल हम; आज वही शख्स किसी और के लिए मुस्लमान हो गया। |
कर दिया कुर्बान खुद को हमने वफ़ा के नाम पर; छोड़ गए वो हमको अकेला मजबूरियों के नाम पर। |
महफ़िल ना सही, तन्हाई तो मिलती है; मिलें ना सही, जुदाई तो मिलती है; प्यार में कुछ नहीं मिलता; वफ़ा ना सही, बेवफ़ाई तो मिलती है। |
कमाल का शख्स था, जिसने ज़िंदगी तबाह कर दी; राज़ की बात है दिल उससे खफा अब भी नहीं। |
यह ना थी हमारी क़िस्मत, कि विसाल-ए-यार होता; अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता; तेरे वादे पर जाएँ हम, तो यह जान झूठ जाना; कि ख़ुशी से मर ना जाते, अगर ऐतबार होता। |