ये है कि झुकाता है मुख़ालिफ़ की भी गर्दन; सुन लो कि कोई शय नहीं एहसान से बेहतर! *मुख़ालिफ़: विरोधी *शय: चीज़ |
जो कहा मैंने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर; हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है ! |
आई होगी किसी को हिज्र में मौत; मुझ को तो नींद भी नहीं आती! |
इलाही कैसी कैसी सूरतें तूने बनाई हैं; कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है! * इलाही: ख़ुदा |
बूढ़ों के साथ लोग कहाँ तक वफ़ा करें; बूढ़ों को भी जो मौत न आए तो क्या करें! |
इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है; पर करूँ क्या अब तबीअत आप पर आई तो है! |
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद; अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता! |
ख़ुदा महफूज़ रखें आपको तीनों बलाओं से, वकीलों से, हक़ीमों से, हसीनों की निगाहों से! |
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ; बाज़ार से ग़ुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ! |
किस नाज़ से कहते हैं वो झुंजला के शब-ए-वस्ल; तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते। शब-ए-वस्ल = मिलन की रात |