Akbar Allahabadi Hindi Shayari

  • ये है कि झुकाता है मुख़ालिफ़ की भी गर्दन;<br />
सुन लो कि कोई शय नहीं एहसान से बेहतर!<br /><br />
*मुख़ालिफ़: विरोधी<br />
*शय: चीज़Upload to Facebook
    ये है कि झुकाता है मुख़ालिफ़ की भी गर्दन;
    सुन लो कि कोई शय नहीं एहसान से बेहतर!

    *मुख़ालिफ़: विरोधी
    *शय: चीज़
    ~ Akbar Allahabadi
  • जो कहा मैंने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर;</br>
हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है !Upload to Facebook
    जो कहा मैंने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर;
    हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है !
    ~ Akbar Allahabadi
  • आई होगी किसी को हिज्र में मौत;</br>
मुझ को तो नींद भी नहीं आती!Upload to Facebook
    आई होगी किसी को हिज्र में मौत;
    मुझ को तो नींद भी नहीं आती!
    ~ Akbar Allahabadi
  • इलाही कैसी कैसी सूरतें तूने बनाई हैं;</br>
कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है!</br></br>

* इलाही:  ख़ुदाUpload to Facebook
    इलाही कैसी कैसी सूरतें तूने बनाई हैं;
    कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है!

    * इलाही: ख़ुदा
    ~ Akbar Allahabadi
  • बूढ़ों के साथ लोग कहाँ तक वफ़ा करें;</br>
बूढ़ों को भी जो मौत न आए तो क्या करें!Upload to Facebook
    बूढ़ों के साथ लोग कहाँ तक वफ़ा करें;
    बूढ़ों को भी जो मौत न आए तो क्या करें!
    ~ Akbar Allahabadi
  • इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है;<br />
पर करूँ क्या अब तबीअत आप पर आई तो है!Upload to Facebook
    इश्क़ के इज़हार में हर-चंद रुस्वाई तो है;
    पर करूँ क्या अब तबीअत आप पर आई तो है!
    ~ Akbar Allahabadi
  • इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद;<br/>
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता!Upload to Facebook
    इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद;
    अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता!
    ~ Akbar Allahabadi
  • ख़ुदा महफूज़ रखें आपको तीनों बलाओं से,<BR/>

वकीलों से, हक़ीमों से, हसीनों की निगाहों से!
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    ख़ुदा महफूज़ रखें आपको तीनों बलाओं से,
    वकीलों से, हक़ीमों से, हसीनों की निगाहों से!
    ~ Akbar Allahabadi
  • दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ;<br/>
बाज़ार से ग़ुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ!Upload to Facebook
    दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ;
    बाज़ार से ग़ुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ!
    ~ Akbar Allahabadi
  • किस नाज़ से कहते हैं वो झुंजला के शब-ए-वस्ल;<br/>
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते।<br/><br/>

शब-ए-वस्ल  =   मिलन की रातUpload to Facebook
    किस नाज़ से कहते हैं वो झुंजला के शब-ए-वस्ल;
    तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते।

    शब-ए-वस्ल = मिलन की रात
    ~ Akbar Allahabadi