ज़ाहिर की आँख से न तमाशा करे कोई; हो देखना तो दीदा-ए-दिल वा करे कोई! |
हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी; ख़ुदा करे कि जवानी तेरी रहे बे-दाग़! |
तेरे इश्क़ की इंतेहा चाहता हूँ; मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ! |
आती नहीं सदाएं उनकी मेरे क़फ़स में, होती मेरी रिहाई ऐ काश मेरे बस में; क्या बदनसीब हूँ मैं घर को तरस रहा, साथी तो है वतन में, मैं क़ैद में पड़ा हूँ! |
लगती है चोट दिल पर आता है याद जिस दम, शबनम के आंसुओं पर कलियों का मुस्कराना; वो प्यारी-प्यारी सूरत वो कामिनी-सी मूरत, आबाद जिसके दम से था मेरा आशियाना! |
आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना, वो बाग की बहारें वो सब का चहचहाना; आज़ादियां कहां वो सब अपने घोंसले की, अपनी खुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना! |
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में; या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर! |
खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तक़दीर से पहले; ख़ुदा बन्दे से खुद पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है! |
हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है; बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा! |
तेरे इश्क़ की इंतेहा चाहता हूँ; मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ! |