मुझ में रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा, ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है; बुत भी रखे हैं नमाज़ें भी अदा होती हैं, दिल मेरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है! *बुत: मूर्तियों *अदा: चुकाना |
सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है, बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है; मैं तेरे साथ सितारों से गुज़र सकता हूँ, कितना आसान मोहब्बत का सफ़र लगता है! *बा-वज़ू: शुद्ध और स्वच्छ |
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है, आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा; ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं, तुम ने मेरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा! |
मैंने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी; कोई आहट न हो दर पर मेरे जब तू आए! |
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी; किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी! |
यारों की मोहब्बत का यकीन कर लिया मैंने, फूलों में छुपाया हुआ ख़ंजर नहीं देखा; महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनें, जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा! |
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ; आँखें मेरी भीगी हुई चेहरा तेरा उतरा हुआ! |
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा, कश्ती के मुसाफ़िर ने समंदर नहीं देखा; बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे, एक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा! |
कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए; तुम्हारे नाम की एक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए! |
मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का; मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है! |