दिल को ख़ुदा की याद तले भी दबा चुका; कम-बख़्त फिर भी चैन न पाए तो क्या करूँ! |
कोई चारा नहीं दुआ के सिवा; कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा! |
मेरी मजबूरियाँ क्या पूछते हो; कि जीने के लिए मजबूर हूँ मैं! |
क्यों हिज्र के शिकवे करता है क्यों दर्द के रोने रोता है; अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है! *हिज्र: जुदाई, वियोग, विछोह, विरह |
अब मुझे मानें न मानें ऐ 'हफ़ीज़'; मानते हैं सब मिरे उस्ताद को ! |
इरादे बाँधता हूँ, सोचता हूँ, तोड़ देता हूँ; कहीं ऐसा न हो जाये, कहीं वैसा न हो जाये। |