दिल को ख़ुदा की याद तले भी दबा चुका; कम-बख़्त फिर भी चैन न पाए तो क्या करूँ! |
कोई चारा नहीं दुआ के सिवा; कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा! |
मेरी मजबूरियाँ क्या पूछते हो; कि जीने के लिए मजबूर हूँ मैं! |
क्यों हिज्र के शिकवे करता है क्यों दर्द के रोने रोता है; अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है! *हिज्र: जुदाई, वियोग, विछोह, विरह |
अब मुझे मानें न मानें ऐ 'हफ़ीज़'; मानते हैं सब मिरे उस्ताद को ! |
दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब; मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं। |
क्यों हिज्र के शिकवे करता है क्यों दर्द के रोने रोता है; अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है। |
है इश्क़ भी जूनून भी, मस्ती भी जोश-ए-खून भी; कहीं दिल में दर्द, कहीं आह सर्द, कहीं रंग ज़र्द; है यूँ भी और यूँ भी। |
ये क्या मक़ाम है वो नज़ारे कहाँ गए; वो फूल क्या हुए वो सितारे कहाँ गए; यारान-ए-बज़्म जुरअत-ए-रिंदाना क्या हुई; उन मस्त अँखड़ियों के इशारे कहाँ गए; एक और दौर का वो तक़ाज़ा किधर गया; उमड़े हुए वो होश के धारे कहाँ गए; दौरान-ए-ज़लज़ला जो पनाह-ए-निगाह थे; लेटे हुए थे पाँव पसारे कहाँ गए; बाँधा था क्या हवा पे वो उम्मीद का तिलिस्म; रंगीनी-ए-नज़र के ग़ुबारे कहाँ गए; बे-ताब तेरे दर्द से थे चाराग़र 'हफ़ीज'; क्या जानिए वो दर्द के मारे कहाँ गए। |
ख़ून बर कर मुनासिब... ख़ून बर कर मुनासिब नहीं दिल बहे; दिल नहीं मानता कौन दिल से कहे; तेरी दुनिया में आए बहुत दिन रहे; सुख ये पाया कि हम ने बहुत दुख सहे; बुलबुलें गुल के आँसू नहीं चाटतीं; उन को अपनी ही मरग़ूब हैं चहचहे; आलम-ए-नज़ा में सुन रहा हूँ में क्या; ये अज़ीज़ों की चीख़ें हैं कया क़हक़हे; इस नए हुस्न की भी अदाओं पे हम; मर मिटेंगे ब-शर्ते-के ज़िंदा रहे; तुम 'हफ़ीज' अब घिसटने की मंज़िल में हो; दौर-ए-अय्याम पहिया है ग़म हैं रहे। |