Hafeez Jalandhari Hindi Shayari

  • दिल को ख़ुदा की याद तले भी दबा चुका;</br>
कम-बख़्त फिर भी चैन न पाए तो क्या करूँ!Upload to Facebook
    दिल को ख़ुदा की याद तले भी दबा चुका;
    कम-बख़्त फिर भी चैन न पाए तो क्या करूँ!
    ~ Hafeez Jalandhari
  • कोई चारा नहीं दुआ के सिवा;<br/>
कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा!Upload to Facebook
    कोई चारा नहीं दुआ के सिवा;
    कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा!
    ~ Hafeez Jalandhari
  • मेरी मजबूरियाँ क्या पूछते हो;</br>
कि जीने के लिए मजबूर हूँ मैं!Upload to Facebook
    मेरी मजबूरियाँ क्या पूछते हो;
    कि जीने के लिए मजबूर हूँ मैं!
    ~ Hafeez Jalandhari
  • क्यों हिज्र के शिकवे करता है क्यों दर्द के रोने रोता है;</br>
अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है!</br></br>
*हिज्र: जुदाई, वियोग, विछोह, विरहUpload to Facebook
    क्यों हिज्र के शिकवे करता है क्यों दर्द के रोने रोता है;
    अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है!

    *हिज्र: जुदाई, वियोग, विछोह, विरह
    ~ Hafeez Jalandhari
  • अब मुझे मानें न मानें ऐ 'हफ़ीज़';<BR/>
मानते हैं सब मिरे उस्ताद को !

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    अब मुझे मानें न मानें ऐ 'हफ़ीज़';
    मानते हैं सब मिरे उस्ताद को !
    ~ Hafeez Jalandhari
  • दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब;
    मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं।
    ~ Hafeez Jalandhari
  • क्यों हिज्र के शिकवे करता है क्यों दर्द के रोने रोता है;
    अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है।
    ~ Hafeez Jalandhari
  • है इश्क़ भी जूनून भी, मस्ती भी जोश-ए-खून भी;
    कहीं दिल में दर्द, कहीं आह सर्द, कहीं रंग ज़र्द;
    है यूँ भी और यूँ भी।
    ~ Hafeez Jalandhari
  • ये क्या मक़ाम है वो नज़ारे कहाँ गए;
    वो फूल क्या हुए वो सितारे कहाँ गए;

    यारान-ए-बज़्म जुरअत-ए-रिंदाना क्या हुई;
    उन मस्त अँखड़ियों के इशारे कहाँ गए;

    एक और दौर का वो तक़ाज़ा किधर गया;
    उमड़े हुए वो होश के धारे कहाँ गए;

    दौरान-ए-ज़लज़ला जो पनाह-ए-निगाह थे;
    लेटे हुए थे पाँव पसारे कहाँ गए;

    बाँधा था क्या हवा पे वो उम्मीद का तिलिस्म;
    रंगीनी-ए-नज़र के ग़ुबारे कहाँ गए;

    बे-ताब तेरे दर्द से थे चाराग़र 'हफ़ीज';
    क्या जानिए वो दर्द के मारे कहाँ गए।
    ~ Hafeez Jalandhari
  • ख़ून बर कर मुनासिब...

    ख़ून बर कर मुनासिब नहीं दिल बहे;
    दिल नहीं मानता कौन दिल से कहे;

    तेरी दुनिया में आए बहुत दिन रहे;
    सुख ये पाया कि हम ने बहुत दुख सहे;

    बुलबुलें गुल के आँसू नहीं चाटतीं;
    उन को अपनी ही मरग़ूब हैं चहचहे;

    आलम-ए-नज़ा में सुन रहा हूँ में क्या;
    ये अज़ीज़ों की चीख़ें हैं कया क़हक़हे;

    इस नए हुस्न की भी अदाओं पे हम;
    मर मिटेंगे ब-शर्ते-के ज़िंदा रहे;

    तुम 'हफ़ीज' अब घिसटने की मंज़िल में हो;
    दौर-ए-अय्याम पहिया है ग़म हैं रहे।
    ~ Hafeez Jalandhari