ये जो सिर नीचे किए बैठे हैं; जान कितनों की लिए बैठे हैं! |
शब को मय ख़ूब पी, सुबह को तौबा कर ली; रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई। |
होती कहाँ है दिल से जुदा दिल की आरज़ू; जाता कहाँ है शमा को परवाना छोड़ कर! *शमा: मोमबत्ती |
जब से छूटा है गुलिस्ताँ हम से; रोज़ सुनते हैं बहार आई है! *गुलिस्ताँ: फूलों का बगीचा |
हाल तुम सुन लो मेरा देख लो सूरत मेरी; दर्द वो चीज़ नहीं है कि दिखाए कोई! |
दिल में वो भीड़ है कि ज़रा भी नहीं जगह; आप आइए मगर कोई अरमाँ निकाल के! |
जाते हो ख़ुदा-हाफ़िज़ हाँ इतनी गुज़ारिश है; जब याद हम आ जाएँ मिलने की दुआ करना! |
आँखें साक़ी की जब से देखी हैं; हम से दो घूँट पी नहीं जाती! |
सच है एहसान का भी बोझ बहुत होता है; चार फूलों से दबी जाती है तुर्बत मेरी! *तुर्बत: क़ब्र |
सब कुछ हम उन से कह गए लेकिन ये इत्तेफ़ाक़; कहने की थी जो बात वही दिल में रह गई! |