मिल रही हो बड़े तपाक के साथ; मुझ को यकसर भुला चुकी हो क्या! *तपाक: जोश *यकसर: बिलकुल |
उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या, दाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या; मेरी हर बात बे-असर ही रही, नक़्स है कुछ मेरे बयान में क्या! |
आईनों को ज़ंग लगा; अब मैं कैसा लगता हूँ! |
ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं, वफ़ा-दारी का दावा क्यों करें हम; वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बत, अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यों करें हम! *इख़्लास: सच्चा और निष्कपट प्रेम |
शब जो हम से हुआ माफ़ करो; नहीं पी थी बहक गए होंगे! |
अब मेरी कोई ज़िंदगी ही नहीं; अब भी तुम मेरी ज़िंदगी हो क्या! |
मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं, यही होता है ख़ानदान में क्या; अपनी महरूमियाँ छुपाते हैं, हम ग़रीबों की आन-बान में क्या! |
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे, जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे; शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं, मेरे बुझने का नज़ारा करने आ जाते होंगे! |
नया एक रिश्ता पैदा क्यों करें हम, बिछड़ना है तो झगड़ा क्यों करें हम; ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी, कोई हंगामा बरपा क्यों करें हम! *बरपा: होना |
हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम; तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम! |