हम तो बचपन में भी अकेले थे; सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे! |
यही हालात इब्तिदा से रहे; लोग हम से ख़फ़ा ख़फ़ा से रहे! * इब्तिदा :आरम्भ, शुरुआत। |
इन चिराग़ों में तेल ही कम था; क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे! |
क्यों डरे कि ज़िन्दग़ी में क्या होगा, हर वक़्त क्यों सोचे कि बुरा होगा; बढ़ते रहे बस मंज़िलो की ओर, हमे कुछ मिले या ना मिले, तज़ुर्बा तो नया होगा! |
ये ज़िंदगी भी अजब कारोबार है कि मुझे; ख़ुशी है पाने की कोई न रंज खोने का! |
जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता; मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता! |
जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता; मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता! |