Nazar Lakhnawi Hindi Shayari

  • कोई मुझ सा मुस्तहके़-रहमो-ग़मख़्वारी नहीं,<br/>
सौ मरज़ है और बज़ाहिर कोई बीमारी नही;<br/>
इश्क़ की नाकामियों ने इस तरह खींचा है तूल,<br/>
मेरे ग़मख़्वारों को अब चाराये-ग़मख़्वारी नही।Upload to Facebook
    कोई मुझ सा मुस्तहके़-रहमो-ग़मख़्वारी नहीं,
    सौ मरज़ है और बज़ाहिर कोई बीमारी नही;
    इश्क़ की नाकामियों ने इस तरह खींचा है तूल,
    मेरे ग़मख़्वारों को अब चाराये-ग़मख़्वारी नही।
    ~ Nazar Lakhnawi