अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की |
देने वाले की मशिय्यत पे है सब कुछ मौक़ूफ़; माँगने वाले की हाजत नहीं देखी जाती! |
धीमे सुरों में कोई मधुर गीत छेड़िए; ठहरी हुई हवाओं में जादू बिखेरिए! |
न जाने कौन सा आसब दिल में बसता है, के जो भी ठहरा वो आखिर मकान छोड़ गया! |
मेरे हम-सकूँ का यह हुक्म था के कलाम उससे मैं कम करूँ; मेरे होंठ ऐसे सिले के फिर उसे मेरी चुप ने रुला दिया! |
तेरे बदलने के बावसफ भी तुझ को चाहा है; यह एतराफ़ भी शामिल मेरे गुनाहों में है! |
यह मेरी ज़ात की सब से बड़ी तमन्ना थी, काश, के वो मेरा होता, मेरे नाम की तरहँ! |
न जाने कौन सा आसब दिल में बसता है; के जो भी ठहरा वो आखिर मकान छोड़ गया! |
पूरा दुःख और आधा चाँद हिजर की शब और ऐसा चाँद, इतने घने बादल के पीछे कितना तनहा होगा चाँद; मेरी करवट पर जाग उठे नींद का कितना कच्चा चाँद, सेहरा सेहरा भटक रहा है अपने इश्क़ में सच्चा चाँद! |
धनक धनक मेरी पोरों के ख़्वाब कर देगा; वो लम्स मेरे बदन को गुलाब कर देगा! धनक: इन्द्रधनुष लम्स: स्पर्श |