एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो, दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो; आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में, कूच का ऐलान होने को है तैयारी रखो! |
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा; हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा! |
घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया; घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है! |
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर; जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ! |
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे, फिर भी मशहूर हैं, शहरों में फ़साने मेरे; ज़िंदगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे, अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे| |
गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या क्या हैं; मैं आ गया हूँ, बता इंतज़ाम क्या क्या हैं; फ़क़ीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या क्या हैं; तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या है। |
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें; जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें; शाखों से टूट जायें वो पत्ते नहीं हैं हम; आँधियों से कोई कह दे कि औकात में रहें। |
आँखों में पानी रखो, होंठो पे चिंगारी रखो; जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो; राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें; रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो। |
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए; काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए; दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया; फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए। |
अब हम मकान में ताला लगाने वाले हैं; पता चला हैं कि मेहमान आने वाले हैं। |