ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा, इस रात की तक़दीर सँवर जाए तो अच्छा; जिस तरह से थोड़ी सी तेरे साथ कटी है, बाक़ी भी उसी तरह गुज़र जाए तो अच्छा! |
तुम मेरे लिए अब कोई इल्ज़ाम न ढूंढो; चाहा था तुम्हें एक यही इल्ज़ाम बहुत है! |
किस दर्जा दिल-शिकन थे मोहब्बत के हादसे; हम ज़िंदगी में फिर कोई अरमाँ न कर सके! |
इस तरफ़ से गुज़रे थे क़ाफ़िले बहारों के; आज तक सुलगते हैं ज़ख़्म रहगुज़ारों के! |
यूँ ही दिल ने चाहा था रोना-रुलाना; तेरी याद तो बन गई एक बहाना! |
हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उठें; वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं! *बर्क: बिजली |
उन का ग़म उन का तसव्वुर उन के शिकवे अब कहाँ; अब तो ये बातें भी ऐ दिल हो गयी आई गई! |
हम ग़म-ज़दा हैं लाएँ कहाँ से ख़ुशी के गीत; देंगे वही जो पाएँगे इस ज़िंदगी से हम! |
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को; क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया! |
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम; ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम! |